सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका खंड 1 | Samyag Gyan Chandrika Khand - I

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Samyag Gyan Chandrika Khand - I by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सैम्यगज्ञानचन्द्रिका पौठिका ) हे सो कहिए है - जीवादि तत्त्वनि का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है । सो बिना जाने श्रुद्धान का होना श्राकाश का फुल समान है । पहले जाने तब पीछे तैसे ही प्रतीति करि श्रद्धान कौ प्राप्त हो है । ताते जीवादिक का जानना श्रद्धान होने ते पहिले जो होइ सोई तिनके श्रद्धान रूप सम्यग्दर्शन का कारण जानना । बहुरि श्रद्धान भए जो जीवादिक का जानना होइ, ताही का नाम सम्यग्ज्ञान है । बहुरि श्रद्धानपुर्वक जीवादि जाने स्वयमेव उदासीन होइ, हेय कौ त्याग, उपादेय कौ ग्रहै, तब सम्यक चारित्र हो है । अज्ञानपूर्वेक क्रियाकांड ते सम्यक्चारित्र होइ नाह्वी । ऐसे जीवादिक कौ जानने ही ते सम्यग्दर्शनादि मोक्ष के उपायनि की प्राप्ति.-निश्वय करनी । सो इस शास्त्र के अभ्यास ते जीवादिक का जानना नीकै हो है । जाते ससार है सोई जीव झर कम का संबध रूप है । बहुरि विशेष जाने इनका संबध का जो अभाव होइ सोई मोक्ष है । सो इस शास्त्र विषे जीव श्र कर्म का ही विशेष निरूपण है अथवा जीवादिक षड़ द्रव्य, सप्त तत्त्वादिकनि का भी या विषे नीके निरूपण है । ताते इस शास्त्र का श्रभ्यास अवश्य करना । अरब इहां केड्ठ जीव इस शास्त्र का श्रभ्यास विषे श्ररुचि होने कौ कारण विपरीत विचार प्रकट करे है । तिनिकौ समभकाइए है । तहा जीव प्रथमातुयोग वा चरणानुयोग वा द्रव्याचुयोग का केवल पक्ष करि इस करणानुयोगरूप शास्त्र विषे अभ्यास कौ निषेध है । ल तिनिविषे प्रथमानुयोग का पक्षपाती कह है कि - इदानी जीवनि की बुद्धि मद बहुत है, तिनिके ऐसे सुक्ष्म व्याख्यानरूप शास्त्र विष किछु समभना होइ नाही ताते तीर्थकरादिक की कथा का उपदेश दीजिए तौ नीक॑ समभ, अर समक्ति करि पाप ते डरे, धर्माचुरागरूप होइ, ताते प्रथमानुयोग का उपदेश कार्यकारी है । ताकौ कहिये है - श्रब भी स्व ही जीव तौ एक से न भए है । हीनाधिक बुद्धि देखिए है । ताते जैसा जीव होइ, तैसा उपदेश देना । श्रथवा मदबुद्धि भी सिखाए हुए भ्रभ्यास ते बुद्धिमान होते देखिए है । ताते जे बुद्धिमान है, तिनिकौ तौ यह ग्रंथ कार्यकारी है ही भर जे मंदबुद्धि है, ते विशेषजुद्धिनि ते सामान्य-विशेष रूप गणस्थानादिक का स्वरूप सीखि इस शास्त्र का शझ्रभ्यास विपे प्रवर्तीं । हां संदबुद्धि कहे है कि - इस गोम्मटसार शास्त्र विषे तौ गूरित समस्या झनेक श्रपूर्व कथन करि बहुत कठिनता सुनिए है, हम कंसे या विष प्रवेश पावे ? तिनकौ कहिये है - भय मति करौ, इस भाषा टीका विष गणित श्रादि का भ्र्थ सुगमरूप करि कह्मा है , ताते प्रवेश पावना कठिन रहा नाही । वहुर या




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