भोगोलिक शब्दकोष और परिभाषाएं | Bhaugolik Shabda Kosh Aur Paribhaashaaein

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Bhaugolik Shabda Kosh Aur Paribhaashaaein by डॉ. अमरनाथ कपूर - Dr. Amarnaath Kapoor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ा श्र भौगोलिक दाब्दकोष व परिभाषायें ठंड पड़ती है । इस वत्त के क्षेत्र में भखण्ड नहीं के बराबर है । अधिकतर भाग बर्फीला जलखण्ड है जिस पर से होकर तेज बर्फीली हवायें चलती रहती हैं। अभी तक इस प्रदेश की कोई विशेष खोज नहीं हो सकी है । बर्फीलि तूफानों के कारण खोजकायें प्रायः असंभव- सादीख पड़ता हैं । ६606८ हि1ए८ा (यथापू्वे नदी ) भूखण्ड पर रोज नये-नये परिवतन हुआ करते है । कभी कोई भाग नीचे दब जाता है तो कभी कोई भाग ऊपर उठकर खड़ा हो जाता है। अक्सर ऐसा होता है कि नदी के मार्ग में उत्क्षेप के कारण कोई नया स्थल रूप उत्पन्न हो जाता है । फलत या तो नदी का प्रवाह रुक कर भिन्न दिशा की ओर अग्रसर हो जानना या नदी प्रवाह और नवीन स्थ लरूप के बीच एक युद्ध-सा नुरू हो जाता है । नदी का जल अपने में मिश्रित कंकड़-पत्थर की सहायता से नवीन भूखंड को काट-छाँट करना शुरू करता है और कछ समय में उस स्थल रूप के बीच से काट कर अपना मार्ग निकाल लेता है । इस प्रकार की नदी को सदीं यथापर्वक कहते हैं । क्योंकि वर्तमान स्थलरूप से वह पुरानी होत॑ ढ । औ.0६0120116 (अन्थासाइट) कोयला प्राणिज व वनस्पति निक्षेप का सडा व॒ परिवस्तिंतरूप हूँ । लगातार दबाव व गर्मी के कारण इस प्रकार के मिक्षे५ कोंयले का रूप धारण कर लेते हैं । परन्त दबावध्व निक्षेप के यंग और काल के अनसार कोयला कई प्रकार का होता है । अन्थासाइट कोयला सब से उत्तम प्रकार का होता है । इसका रंग गहरा काला इसका रूप कठोर व चमकदार और इसमें पानी व गैस की मात्रा सबसे कम होती है । साधारणतया अन्थासाइट कोयले में कारबन का अंश ९० प्रलिदत होता है । इसे हम कोयले का पूर्ण विकसित या परिपक्व रूप कह सकते है । यह भार में हल्का जलाने म एक दफ आग पकड़ लेने पर खूब ऑच देता हैं । औै10101000 छ्ु6०820900घ (मानव भूगोल) भूगोल शास्त्र का वह अंग है जिसके अन्तगंत हम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच मनष्यजाति के वितरण का अध्ययन करते इंसका मानवतत्व विज्ञान या मानव विकासशास्त्र (ै.0000010छ४ ) से बड़ा ही घनिष्ट सम्बन्ध है । इस शाखा का मुख्य उद्देश्य मानव जाति व समाज के विकास पर भौगोलिक परिस्थितिपों के नियन्त्रण को अध्ययन करना होता है । मानव भूगोल पृथ्वी के मनुष्यों पर उसके आस-पास की जलवायु भूप्रकृति और वनस्पति का प्रभाव तथा इन भौगोलिक परि- स्थितियों पर विजय पाने के लिये उसके प्रयलों का अध्ययन करती है । (देखिये छषफाघण 06०81 2]00) _. 00101106 (अध्व मोड़ प्रतिनति) सपाट स्थल भाग धीरे-धीरे उठता रहता है और थोड़े समय में समुद्र के धरातल से ऊँचे होकर शुष्क प्रदेश बन जाते हैं । इन उठें हु भूभागों पर प्राकृतिक दक्तियाँ आघात करना प्रारम्भ कर देती हैं और कालान्तर में भकम्पों के आते रहने से या अन्य मन्दगतियों के दबाव से ऊपरी भपटल मुड़ जाता है ।. इन गलियों को तारतम्यता से ये घरेरे और मुड़ जाते हैं । जब इस प्रकार परतों में घरेरे पड़ते हें तो एक भाग ऊपर उठ जाता हे और उसे ऊचध्वं मोड़ कहते हूं । दूसरा भाग नीचे दब जात और घाटियाँ बन जाती हे । ये ऊध्वं मोड दो प्रकार के हीते हे--(१) खुले हुये या फैले हुये और (२) सँकरे । खुले हुये ऊध्वें मोड़ कम उँचे व गम्बज की तरह के होते हैं । संँकरे ऊध्व मोड़ काफी ऊँचे व ढाल पहाड़ियों का रूप ग्रहण कर लेते हैं । दा प0पंपताण (मुड़ा हुआ ऊच्चें प्रदेश) ऊध्वं मोड़ के बीच से यदि एक अक्ष रेखा खींची जाय तो उसके दो भाग हो जाते हें । प्रत्येक भाग को उसका अंग कहते हैं। कभी-कभी ऐसा होता हैं कि ऊर्धव मोड़ के चौड़े अंग पर प्राकृतिक शवितियों व मन्द




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