राधाकृष्ण ग्रंथावली | Radha Krishna Granthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्८ राघाऊष्ण-यंघावलों जल पियत सिंह अर अजा साथ | विद्युत ठाढ़ी जहूँ बाँघि हाथ ॥। जा सम न श्रौर तिय सुनी कान | जनमे न जगत नर जा समान ॥। जाकी न दया को कहूँ अंत | लहि जासु छाँह सब सुख बसंत | जा जीव मात्र पे करत प्रीत | मनु निज कुटुंब सम सबे मीत ॥। सुनि जासु सुधा सम मधुर बेन । सब प्रजापुज अति लहत चेन ॥। अति कृपा प्रेम भरि जासु दीठ | लखि, रत प्रजा के दुखह्ति नीठ सा असित गणुननि की रासि सात | हा हा ! चिनु जीवन है लखात || तजि सबे दया अर माह हाय | सुरलोक गई केसे सिधाय || वसनर पर तजि अखिल भुवन सागर अगाघ | भुव तीन हाथ कीन्हों समाध || हा हा ! यह दुख नहिं सद्यों जात | चहुँ ओर यहे धघुनि है सुनात || हा मातु ! हाय हा मातु हाय ! तजि नेह किते तू छिपी जाय ॥ बोालत न हाय क्यों निठुर होय | देखे न पुत्र तुव रहे राय ||




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