सतसई सप्तक | Satsai Saptk

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Satsai Saptk  by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७ फे साध नए रूप में देखी जाती है। इस प्रभाव को लाने के लिये _सूक्तिकार के पास कई साधनों का दाना भ्रावश्यक है। सबसे पहले उसके कथन में कुछ बक्कता या बाँकापन होना चाहिए । उसे घुमाव-फिराव से बात कहनी चाहिए । बिल्कुल सीधे. ढंग से ' * कहने से बात का मदत्त्व बहुत कुछ घट जाता है । . सिंदद्वार या सदर फाटक से आक्रमण करनेवाले को दृढ़ झवराध का सामना करना पड़ता है । इसी लिये किले में प्रवेश करने के लिये झाक़्रमण- कारी ऐसे किसी किनारे के छोटे-माटे दरवाजे की दोह में रहते हैं जिसका कोट के निवासियों का उतना खयात्त न हो । दिल में प्रवेश करने के लिये भी बात को ऐसे ही माग ढूँढ़ने चाहिएँ । विदग्ध वाणी फोर ऐसे मागे सहज ही सिल जाते है। जो वात बहुत दिनों के शास्नाथ श्रौर तक-वितर्क से किसी के सन में न जमाई जा सके वह सइसा किसी चतुराई भरी एक छोटी सी बाँकी उक्ति से एक क्षण में सुभाई जा सकती है । 'सदसा” शब्द पर विशेष ध्यान - देंना चाहिए । क्योंकि विदग्ध वाणी का प्रभाव भी बिना सइसा कद्दे बहुत झुछ 'क्षीण हो जाता है। अचानक श्र शीघ्र झाक्रमण प्रभावशाली होता है । यदि आक्रांतां को तैयारी का अवसर दे दिया जाय ते! फिर विजय झनिश्चय में पड़ गई । विजय 'ाक्रांत को ध्राशचये में डालने में है । आश्चये उतना झधिक गद्दरा होगा जितनी मात्रा में उक्ति सदसा कह्दी जायगी श्रौर वेग-पूथणे होगी ! ' इन्हीं शुर्ों के कारण कोई व्यक्ति प्रत्युस्पन्रमति कहलाता है । झवसर ' पर फबती बात को झचानक कद्द बैठना यददी भ्रत्युव्पन्न सति का लक्षण है। सूक्तिकार का प्रत्युत्पन्नमति होना चाहिए । यद्द बात ता बिना. _ कहे दी माननी चाहिए कि सूक्तिकार के पास ज्ञान का. मांडार पयाप्त देना चाहिए, परंतु उससे झधिक उसके पास श्रवसर के उपयुक्त उचित उपयेग करने की शक्ति द्ोनी चाहिए ।




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