जैन रामायण | Jain Ramayana

Jain Ramayana by श्रीयुत कृष्णलाल वर्मा - shriyut krishnalal verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७ ) इस महावीर-हिन्दी-जेन-यन्थमालामं हमने खास तरहसे प्राचीन यम्यरानरायाक बनाए हुए ग्न्थोका हिन्दी अनुवाद ही प्रकाशित करना स्थिर किया हे । माठाका प्रथम यंथ कढिकाल सर्वज्ञ हेम- चंद्राचाय रचित न्रिपधिशडाका-परप-च्त्रिके सातवें पर्वका हिन्दी अनुवाद पाठकोंके हाथमें है । दूसरा अंथ इन्हीं आचार्य महाराजके बनाये हुए त्रिषष्टिशाका-पुरुष-चरित्र प्रथम पर्वका अनुवाद होगा । उसमें श्री ऋषभदेव भगवानका और उनके पुत्र भरतचक्रवर्तीका जीवनव॒त्तान्त है । माठाकों सचित्र निकाठनेका हमारा विचार हें । प्रस्तुत ंथमें शीघ्रताकें कारण हम केवल एक ही चित्र दे सकें हैं । वह चित्र है सीताका अभ्िप्रवेद ? । अगढ़े बंथमें हम विशेष चित्र देनेका प्रयत्न करेंगे । सब साधारणके सुभीतेके छिए थोड़े पढ़े छिखे हमारे मारवाड़ी भाई भी सरठतासे पढ़ सकें इसलिए हमने ग्रंथमें बड़े टाइपका उपयोग किया है । आशा हैं पाठक हमारे इस प्रयत्नको अपनायँगे और माठाके स्थायी आहक बन हमारे उत्साहकों बढ़ायँगे । मालाके स्थायी ग्राहकोके नियम । . १-आठ आने जमा करानेसे स्थायी ग्राहक होते हैं । २-स्थायी-ग्राहकॉकों माठाकी प्रत्येक पुस्तक पोनी कीमतें दी जाती है | -३-स्थायी-ग्राहकौकों माठाकी ४) रु. की पुस्तकें वर्षभरमें जरूर ठेनी पढ़ती हैं । विशेष छेना न लेना उनकी इच्छा पर निर्भर है ।




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