रूपी | Roopee

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Roopee by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ः ख्पी भ श्प्र जन न न्पनपपजी तब तक नीचे लू चलने लगी थी--श्रखवारोंको पढ़ सकती तो देखती . किं.वहाँ ११२.पौर ११४ डिग्री की गर्मी है । ऐसी लू में वहाँ जाकर कोई पहाड़ी बच नहीं सकता यह वह जानती थी तो भी उसने श्रपने दर्जी पतिको चिट्टियाँ लिखवाई कि श्राकर ले जाओ । पर वह इस तरहका खतरा मोललेनेके लिये तैयार नहीं था । रूपी मुद्किलसे एक महीने तक झ्पनेको बचा पाई । इसमें भी किसी ने किसी वहानेसे कई बार उसको श्रपनी माँ श्रौर सौतेले बाप की झिड़कियाँ खानी पड़ां । सबने मिलकर फिर उसी खड्ड में उसे ढकेल दिया । गमियाँ बीतीं वर्षा शुरू हो गई)। ढाई-तीन महीन झ्रांये हो गये थे । पैर भारी हैं यह देरदूसे मालूम हुमा । उसकी श्रौर उससे भी अधिक उसकी माँ की इच्छा थी कि दर्जी जल्दी श्राकर ले जाय । दर्जी की चिह्ठियाँ बरावर श्राती थीं और वह श्रपने प्रेमको प्रदर्शित करनेके लिए कभी-कभी सिनेमाके गानेकी कुछ पांतियाँ भी उद्धृत . कर देता । श्रचानक एक बार उसने अपनी चिट्ठीमें लिखा-मेरे मँ-बाप तुम्हें लाना पसन्द नहीं करते । रूपीके पैरसे धरती निकल गईं । झब क्या किया जाय ? माँ के सामने वह हमेशा दवती रहती थी लेकिन श्रबकी उसने उसे बहुत फटकारा--मैं दलदलसे निकल चुकी थी तुमने मुझे श्रपनें लोभके लिय फिर गडढेमें ढकेला । दर्जीकी इन्कारसूचक चिट्ठी मिली । उसने जब उसे पढ़वाकर सुना तो वह श्रपनेको सँभाल न सकी श्रौर फूट-फूट कर रोने लगी । उसकी म/की मवुद्याला यद्यपि कानूनकी दृष्टिसि एक गुप्त चीज़ थी लेकिन अ्रन्तर्जगतके लोग उसे श्नच्छी तरह जातते थे । _ रूपीके ससुराल से लोटकर श्रानेकी खबर जहाँ पुराने भँवरोंको लगी वहाँ इनके मँडराने श्रौर फूल सूघनेकी गन्ध कुछ ऐसे . लोगों को भी लग गई जो दर्जी के परिचित थे । उन्होंने ही चिट्ठीमें सारी वात उसके पास लिख दी थी । यहाँ वैठी-बैठी झूठी-सच्ची सफाई पेश करना भी रूपीके लिये श्रासान नहीं था । फिर उस सफाएतप




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