वैदिक देवशास्त्र | Vaidik Devshastra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : वैदिक देवशास्त्र - Vaidik Devshastra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सूर्यकान्त - Soory Kant

Add Infomation AboutSoory Kant

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
12 वैदिक देवशास्त्र हैं । कितु एक वात जो इन सब में समान रूप से पाई जाती है यह है कि हैं ये सभी उसी दा दारुण परम त्तत्व के प्रदर्शन जो हमसे मूलतः भिन्न प्रकार का है श्रौर जो इन विकास कफ के द्वारा श्रौर इनके रूप-में श्रपने प्रापकों देशकाल द्वारा परिसीमित किया करता है। श्रसीमित का इस प्रकार सीमा में वंघना ही भ्राइचरयें की परा कोटि है कितु इस प्रसंग में इस वात पर ध्यान देना श्रावश्यक है कि भले ही उस परम दाक्ति ने श्रपने झ्ापको कृष्णा के रूप में प्रकट किया था फिर भी. हमारा कृष्ण उस शबित का सीमित विकास होने के कारण उसकी अपेक्षा कम दवित वाला है । साना झोटो के सिद्धान्त से मिलता-जुलता दूसरा सिद्धान्त माना का है जिसके श्रनुसार जगदु का हर पदार्थ माना ही की शक्ति का विकास है। कालक्रमाद्‌ मानावाद के ऊपर दाधनिकों की श्रास्था इतनी अ्रघिक बढ़ी कि उन्हें धर्म का सुल ही माना के सिद्धान्त में उदृशूत हुमा दीख पड़ने लगा । माना के विपय में दो-एक वातें कह देना श्रप्र संगिक न होगा । १६वीं सदी के श्न्तिम चर में घरंग्रेज पादरी कोड़िंगूटन ने दठाया फि मेलानिेशियन लोग एक साल तत्त्व की साला-सी जपा करते हैं जो एक श्रव्यक्तीभूत शक्ति श्रयवा प्रभाव है श्रीर जो भोतिक नहीं है। यह दाक्ति प्रकृति से वाहर है फिर भी यह सदैव प्रकृति के किसी रूप में या मानव श्रथवा किसी अन्य आणी के श्राजमान रूप में प्रकट हुझा करती है। यह माना किसी भी वस्तु विशेष के साथ वंघी हुई नहीं है। फिर भी यह किसी भी वस्तु के रूप में या उसके द्वारा श्रपने श्रापको प्रकट कर सकती है। मेलानेशियन लोगों के श्रनुसार सर्ग-प्रसार भी मौलिक-तत्त्व की माना हो का परिणाम है । किसी जाति या देश का नेता भी इस माना ही के कारण उस जाति था देश का नेता बना करता है । श्रौर क्योंकि माना श्रपना विकास किसी भी रूप में झयवा किसी भी प्रकार से कर सकती है इसलिये उसे श्रव्यक्तिक माना गया है श्रोर कहा गया है कि वह श्रशषेप जगती में व्याप्त .है। भोर इस वात का समर्थन इस तथ्य द्वारा किया गया है कि इरोकुझोइस की श्रोरेण्डा हुरोन की भोकि भ्रौर श्रकीकन पिगमीज़ की मेगवे माना से मिलती-जुलती शक्तियां हैं श्रौर इन बातों का स्वारसिक परिणाम यह हुमा कि धर्म का श्रादि-मूल श्रव माना को माना जाने लगा। ध्यान रहे कि इस मानावाद का स्थान घार्मिक विकास में प्रारानव/द से पहले स्तर पर हे । प्रारानवाद का आ्राघार श्रात्मा है जो कि जीवित मृत भूत-प्रेत सभी के झात्मा के रूप में प्रकट होता है । टेलर के दाब्दों में तो धर्म का श्नादिसूल ही प्राणनवाद में है--क्योंकि उस विद्वादु के अनुसार धर्म के श्रादि रूप में जगद्‌ को प्रारित रूप में देखा जाता था शोर इसके पीछे श्रौर इसके भीतर झगरित झात्माएं व्याप्रियमाण मानी जाती थीं। कितु अ्रव दाशंनिकों को कोड़िद्धूटन की माना हाथ लग गई जोकि श्रव्यक्तिक थी भौर जगती में यहां-वहां हर जगह विकसित हुई दीख पड़ती थी 1 परिणाम इसका यह हुनर कि दाशंनिकों ने घ्म के मूल को प्राशनवाद के वजाय शरद मासा में मानना श्रारंभ कर दिया 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now