जीवन सुर्खियाँ | Jeevan Surkhiyan

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Jeevan Surkhiyan by क्षेमचन्द्र सुमन - Kshemchandra Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री पर्व स्दनाथ ०/फुर ज हंस रदा है। बन्दूफ होती, चे मुकाबला किया आता । लाइसेंस खत्म हो गया है । लेकिन एक मजेदार बाप हुई । काँचो तीरपर बेंदसी बेठी दाव से बता छील रही थी। पसका सेमना पास दी मैंघा था थे जाने कब एक चड़ियाल रदी से बाहर निफला आर सेमने की टॉँग पकड़कर पसे पांगी में घसीट को गया । बेदनी कट कूदकर उसकी पीठ पर चार हो गई । दाव से उस गिरंगिटदेस्य ( घड़ियाल ) फे गले पर लगी छच सारने । थौर मेमने को छोड़कर बह जन्तु पानी में डूब गया । मैंने व्यस्त होकर पूछा-नफिर कया हुआ ? अब्दुल से कहा-नससके बार की खबर तो पानी में ही डूब गई। निकासाऋर बाहर की थाने में देर लगेगी | दूसरी बार जब मेंट होगी, तो चर मेजकर उसकी सजाश कराडँंगा । सोकिन वह फिए तोदा नहीं । शायद तलाश करने गया हैं । यह यो थी पालकी के भीतर मेरी यात्रा । पालकी के बाहर मेरी सास्टरी चलती । सा गे तिंग सेर विद्यार्थी थे । मारे डर के चुप रहा करते । एकाथ बड़े शरारती थे । पढ़ने लिखने में विलकुल न सहीं लगाते थे | उन्हें सें डर दिखाया करता कि बढ़े होने पशु छुली का काम करना पढ़ेंगा । सार खाने-खाते इनके शरीर में सोचें से छपर तक दाग निकल छाये थे, फिर भी इनको शरारत जाती नहीं थी, क्योंकि थरि इसको शशरत सके जाती, तो काम क्रेसे 'बलता, खेल ही खत्म हा जाता | काठ के एक सिंह को सेकर एक श्र खेल भी था । पूजा सें बलिदान को कहानी समनकर सोचा था कि सिंधकों बलि देखे पर एक भारी बाजेला खड़ा हा जायगा | उसकी पीठ पर लकड़ी से कई भटक सारे । सन्त बनाना पढ़ा था नहीं तो पूजा ही न हो पावी सिंगि ( सि्ठ ) मामा काटुम घ्याश्दियों सेर बाइुम .




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