जिनका मैं कृतज्ञ | Jinka Main Kritagya

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.95 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२. महादेव पंडित ७ झपना घरगाँव छोड़कर बछवलमें व्वले आये । उन्होंने घरका सारा काम श्रपने ऊपर ले लिया श्र यह भी ध्यान रक््खा कि लड़के कुछ पढ़ जायँ । मौसा श्रौर उनके पुन्न महावीर अब सदाकेलिये बछुवलके हो गये । बछुवलके नामके श्रन्तमें बल बतलाता हैं कि यह मुस्लिम-कालसे पहलेका गाँव है । संस्कत रूप इसका वत्स्पल्ली होता जिसके प्राकृत उन्चरणका ही यहू बिगड़ा हुआ रूप है। बछवल काफी बड़ा गाँव था । श्ासपासके गाँवों से मुकाबिला करनेपर वह झधिक संस्कृत मी मालूम होता था। माली तमोली जैसी जातिवाले लोगों का बसना यही बतलाता था कि वहाँ कभी सामन्तोंका निवास था । बछुवलमें भी पुराने ध्वंसावशेप हैं लेकिन सरहदपर कुछ ही फलींग बाद दी सिसवाका मीलों तक चला गया ध्वंसावशेष है जिसमें इंसवी सनकी पहली-दूसरी शताब्दी (कनिष्क आदिके)के सिक्के अब भी मिल जाते हैं । सिंसबा जब सामन्त-राजधानी था उस समय बछुवल उसका एक उपनगर रहा होगा । श्राज सिसवाको पीछे रख बछुबल श्रागे बढ़ गया । सिसवाका ध्वंस श्रारम्मिक मुस्लिम-कालमें बड़ी ब्र्बरता पूर्वक हुआ इसीलिये बह उजड़ गया श्र बहुत समय बाद उसपर एक-दो टोले बस पाये । बछुवलके संस्कृत होनेका एक श्रौर प्रमाण वहाँके अनेक कायस्थ घर थे जो कितनी ही बातोंमें आगे बढ़े हुए थे । मौसाने महादेवको संस्कृत पढ़ाया श्रौर छोटे भाई सहदेवको उदू - फारसी । दोनोंको नौकरी करनेकी जरूरत नहीं थी । सहदेव पांडे जब-तब शीन-क्राफ दुसस्त करके झपनी भोजपुरीमें उदू के शब्द बोल लेते थे और कभी-कमी मुँहमें तम्बाकू डाल उसे झ्रोठके नीवे दबाये चारपाईपर पढ़े रामायण पढ़ा करते थे । दर्शन होनेसे पहिले शायद मैं मद्दादेव पशिडतके श्रस्तित्वको नहीं जानता था । मेरी सबसे बड़ी फूश्मा बछुवलमें ब्याही हैं यह भी शायद उसी समय जाना । १६०९२ की बर्पाके आारम्ममें पन््ददामें हैजाकी बीमारी आई । मैं नौ वर्ष का था । नाना-मानी ने इस ागसे निकालकर मुझे घर पहुँचा दिया | मैं कनैलामें सावनके महीनेमें पहुँचा । उससे एक साल पहले कनैलामें हैजा आ्राया था । उस वक्त मैं भी कनैला हीमें था । घर भर बीमार पड़ा लैकिन हमारे घरमें कोई नहीं मरा । उसी समय शतवंडीके पाठकी मनौती मानी गई । वही शतचंडी पाठ करनेकेलिये महादेव परिडत श्रौर महावीर तिवारी कनेला आये थे । चंडी पाठ ( दुर्गा-सप्तशती ) बिल्कुल छोटा-सा अन्थ नहीं है और उसका भी सौ पारायण करना था यह मालूम नहीं लेकिन मेरे जानेपर भी वह कई दिनों तक चलता रहा । महादेव पश्डितकेलिये शतचंडी-पाठ बायें हाथ का ख़ेल था। बह डाकगाड़ीकी रफ्तारसे पाठ करते थे महावीर तिवारीको एक-एक श्रक्षर टो-टो कर पढ़ना पढ़ता था। बेचारे सिफ॑ अक्षर भरका शान रखते थे । इसमें सन्देद नहीं उनका पाठ अत्यन्त श्रशुद्ध होता था जिंसे घुनकर चंडी कमी प्रसन्न नददीं हो सकती थीं । पर चंडी केवल चंडी नहीं झपाजु भी हैं इसलिये उन्होंने घरका कोई श्रतिष्ट नहीं किया ।
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