भक्ति रहस्य | Bhakti Rahsya

Bhakti Rahsya by स्वामी अखण्डानन्द - Swami Akhandanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ भक्ति रहस्य वी दूरीको धूक क्षण भी सहन न करे । क्तिना वीर साधक है वदद जो श्रवाच्छनीय परिस्थिति का परित्याग बरसे वे लिये इतना व्याकुल दो जाता है कि में कहाँ पहुँच जारऊंगा* इसका विचार किये बिना दी पागठवी मेति उछल पढ़ता है ! (१) «> दिप्यने गुदसे प्रश्न क्या-- भगवन्‌--भगवत्पामिके लिये मिस प्रकारकी आकुतता होनी खादिये ह गुरु मौन रहे। शिष्य उनका गस देख कर चुप दी रददां। स्नान के समय शुर शरीर शिप्य दोनों ने एक साथ ही नदीमे प्रवेश क्या । एकाएक शुरुने शिप्यका सिर, जब बह डुबरी लगा रहा था, पानीमें जोरसे दया दिया। भला बह बिना. दवासके पानीमें कचतक रह सकता *. उसके धीरजका बेधि छूट गया शरीर बदद छरपराकर बाइर निवल श्राया । उसके स्वस्थ होने पर गुरुने धूछा - 'पानीसें निकलनेरे छिये क्तिनी आतुस्ता थी पुम्हारे मग में शिष्यने कहा--बस एक स्षण उसमें दर रह जाता तो मर ही गया था” । सुब--'मरे प्यारे भाई । अभी तो तुम ससारमे जी रहे दो और सुप मान रहे हो । जिस क्षण इस वर्तमान परिस्यितिसे हुम उसी प्रकार कुल उठोंगे, सत्र तुम सारे बन्धनकों उ्निभिभ करके एक क्षणमें ही श्रपने प्रियतम म्रभुदी प्राप्त कर सकोग” | शिप्प--'तब कया वर्तमान परिस्थितिसे ऊयना ही साधनका मारमम है ह इस प्ररार तो असन्तोपपी आग मड़येगी, सतोपामृतका पान मैसे चर सरेंसे है




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