भक्ति रहस्य | Bhakti Rahsya
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.76 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ भक्ति रहस्य
वी दूरीको धूक क्षण भी सहन न करे । क्तिना वीर साधक
है वदद जो श्रवाच्छनीय परिस्थिति का परित्याग बरसे वे लिये
इतना व्याकुल दो जाता है कि में कहाँ पहुँच जारऊंगा* इसका विचार
किये बिना दी पागठवी मेति उछल पढ़ता है !
(१)
«> दिप्यने गुदसे प्रश्न क्या-- भगवन्--भगवत्पामिके लिये
मिस प्रकारकी आकुतता होनी खादिये ह गुरु मौन रहे। शिष्य उनका
गस देख कर चुप दी रददां। स्नान के समय शुर शरीर शिप्य दोनों
ने एक साथ ही नदीमे प्रवेश क्या । एकाएक शुरुने शिप्यका सिर,
जब बह डुबरी लगा रहा था, पानीमें जोरसे दया दिया। भला बह
बिना. दवासके पानीमें कचतक रह सकता *. उसके धीरजका बेधि
छूट गया शरीर बदद छरपराकर बाइर निवल श्राया । उसके स्वस्थ होने
पर गुरुने धूछा - 'पानीसें निकलनेरे छिये क्तिनी आतुस्ता थी पुम्हारे
मग में
शिष्यने कहा--बस एक स्षण उसमें दर रह जाता तो मर
ही गया था” ।
सुब--'मरे प्यारे भाई । अभी तो तुम ससारमे जी रहे दो
और सुप मान रहे हो । जिस क्षण इस वर्तमान परिस्यितिसे हुम
उसी प्रकार कुल उठोंगे, सत्र तुम सारे बन्धनकों उ्निभिभ करके
एक क्षणमें ही श्रपने प्रियतम म्रभुदी प्राप्त कर सकोग” |
शिप्प--'तब कया वर्तमान परिस्थितिसे ऊयना ही साधनका
मारमम है ह इस प्ररार तो असन्तोपपी आग मड़येगी, सतोपामृतका
पान मैसे चर सरेंसे है
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