स्त्री रोग विज्ञानम् | Stri Rog Vigyanm
श्रेणी : साहित्य / Literature, स्वास्थ्य / Health
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.47 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-प्रवेशु है सार में अतुल घन सम्पत्ति ऐश्चर्य | यश -मान और कीति का स्वामी होते | हुए भी मनुष्य श्पने को एक विशिष्ट वस्तु के अभाव में सबंधा दीन-ददीन तथा झसदाय समसने लग जाता है । वद्द विशिष्ट बस्तु है पुन्नरल जिसे प्राप्त करना तथा जिसका समुचित संरच्तण श्और संवद्धन हिन्दू- घ्म का एक संदत्वपूण झड् माना गया है | चरक ने लिखा है--सन्तानद्दीन व्यक्ति उस ऋ्रशागे चृत्त के समान है जिसमें शाखाओं का प्रसार होते हुए शी छाया श्र सौरभ के भाव में न तो उसकी गोद पक्षियों के कलगान से मुखरित होती है न उसके नीचे किसी श्रान्त पथिक को शान्ति मिलती है ं
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