स्त्री रोग विज्ञानम् | Stri Rog Vigyanm

Stri Rog Vigyanm by पं. धर्मानंद - Pt. Dharmanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेशु है सार में अतुल घन सम्पत्ति ऐश्चर्य | यश -मान और कीति का स्वामी होते | हुए भी मनुष्य श्पने को एक विशिष्ट वस्तु के अभाव में सबंधा दीन-ददीन तथा झसदाय समसने लग जाता है । वद्द विशिष्ट बस्तु है पुन्नरल जिसे प्राप्त करना तथा जिसका समुचित संरच्तण श्और संवद्धन हिन्दू- घ्म का एक संदत्वपूण झड् माना गया है | चरक ने लिखा है--सन्तानद्दीन व्यक्ति उस ऋ्रशागे चृत्त के समान है जिसमें शाखाओं का प्रसार होते हुए शी छाया श्र सौरभ के भाव में न तो उसकी गोद पक्षियों के कलगान से मुखरित होती है न उसके नीचे किसी श्रान्त पथिक को शान्ति मिलती है ं




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