कालिदास ग्रन्थावली | Kalidash Granthavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
478.28 MB
कुल पष्ठ :
988
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के प्रथम: सर्गं: श् अर पद न पी जसपर: |
अथाभ्यच्य विधातारं प्रयतौ पुत्रकास्यया
तो दम्पती बशिप्स्य गुरोजेग्मतुराश्रममू ।3 ४
स्निग्धगम्भीर निर्घोषमेकं स्पन्दनमास्थिती
प्राइपेरय॑ पयोवाहं.. विधुदेरावताबिव ॥३६॥
मा. भूदाश्रमपीड़ेति . परिमेयपुरत्सरै ।
अजुभावधविशेषात .. सेनापरिषताबिव |
सेव्यमानो सुखस्पर्शे: शालनियासिगन्धिभिः ।
पुष्परणूत्करिवातेराधृतबनराजिसि। डियो।
मनोभिरामा: श्रणवन्तो रथनेमिस्वनोन्मुसस
जसंवादिनी:केका दिधा मिन्नाः शिखंडिमि:॥ ३६]
परस्पराक्षि सादश्यमद्रोज्कितवर्त्स
सगइन्द्ष पश्यन्ती स्पन्दनावद्धदष्टिप ॥४०॥|
अणीवन्धादितन्वद्धिरस्तम्भां. तोरणस्रजसु |
सारसे: कलनिहादिः कचिदन्नमिताननों ?
एन तलताप ताल बुक ेलिकपतपमतुन सनक, कप मलिकुगकमक दमा
।३७1।
वि हक (0४११००१७
मनसे राजा दिलीप भ्रौर देवी सुदक्षिणाने पुरकी इच्छासे पट
वे दोनों पति-पत्नी वहाँसे श्रपने कुलगुरु वशिष्ठजीके . श्राश्रम
वे दोनों बेठे हुए थे वह मीठी-मीठी घरघराहट करता हुमा च ही
वे दोनों ऐसे जान पढ़ते थे मानों वर्षाके बादलपर ऐरावत श्रौर बिजली दोनों चढ़े चले जा रहे...
हों ।1३६।। उन्होंने अपने साथ सेवक नहीं लिए क्योंकि उन्हें ध्यान था कि बहुत भीड़-भाड़ ले
जानेसे श्राभ्षमके काममें बाधा होगी; पर उनका प्रताप प्रोर तेज ही. इतना श्रधिक था पा
..... कि उससे जान पड़ता था माना साथमें बड़ी भारी सेना चली जा रही हो 11३७ खुले मार्गमें
« सालके गोंदकी गन्धमें बसा हुआ, फुलोंके पराग उडाता हु और वनके बृक्षोंकी पाँतोंकों धीरे-
मय हा धीरे कपाता हुआ पवन, उनके शरीरकों सख देता हुआ उनकी सेवा करता चल रहा था ॥३६८॥.
राजा दिलीप ग्रोर देवी सुदक्षिणाने इधर-उधर हृष्टि घुमाई शोर देखा कि कहीं तो रथकी
: घनघनाहट सुनकर बहुतसे सोर इस अमसे. अपना मुह ऊपर उठा-उठाकर, दृहरे मवोहर ...
दाब्दसे कुक रहे हैं कि कहीं ऊपर बादल तो नहीं गरज रहे हैं ॥३९॥ कहीं वे देखते हैं कि.
हरिणोंके जोड़े मारगसे कुछ हटकर रथकी श्रोर एकटक देख रहे हैं। उनकी सरल चितवनकों
राजा दिलीपने सुदक्षिणाके नेत्रोंकं समान समझा श्रौर सुदक्षिणाने राजा दि नीपके नेत्रोंके
.... समान ॥४०॥ जब कभी वे आँख उठाकर ऊपर देखते तो श्राकाशमें उड़ते हए ओर मी
ही ... वाले बगले भी उन्हें दिखाई पड़ जाते जो पाँतमें उड़तें हुए ऐसे माने पढ़ते थे सानों खम्भेते
बिना ही बन्दनवार टँगी हुई हो ॥४१॥ पवन भी उनके श्रम कल चल रहा था स्ौर यह सं
नरसरनिशसलरवलरस बुक लससपनर-खंगफकामिपवरततरपसलकशपसप रह सामका ,रा यम जं७ा/ 0002
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की. भ्ोर चले ३५ जिस रथपर का
ता जा रहा था ।- उस पर बडे हुए...
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