श्रेष्ठ हिंदी कहानियां | Shraisht Hindi Kahaniya

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Shraisht  Hindi Kahaniya by चन्द्रगुप्त - Chandragupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीली मिट्टी 15 श्रौर, फिर कोई पन्द्रह मिनट तक मैं वहीं छरूम-घूम कर रोता रहा : शायद बरसों बाद मैं इस तरह रोया था । मुझे भ्रपने ऊपर कुछ हैरानी भी मालुम हो रही थी, कुछ दामं भी श्रा रही थी श्रौर यह सोच कर कुछ खुशी भी हो रही थी कि मेरा दिल झभी मरा नहीं है । मैं तहीं जानता, हो सकता है, इसीलिए मैंने श्रपने श्रांसुभ्ों को कुछ ढील भी दे रखी हो । मगर इतना मैं जानता हूँ कि वे बेईमान श्रांसू न थे-- शायद उस भादमी के दिल की घुटन थी, जो इस वक्‍त मेरे श्रांसुभों की शक्ल में बाहर श्रा रही थी; क्योंकि मुक्ते लगता है कि जैसे कभी भ्राग के एक ही गोले से छिटककर यह सारी सृष्टि बनी थी, वैसे ही किसी कुम्हार ने गीली मिट्टी के एक ही गोले से सब इनसानों के दिल भी बनाए थे भौर उनका साज्ध कुछ इस तरह मिलाकर रख दिया था कि एक का दर्द दूसरे के सीने में जाकर वजने लगता है ।




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