मानव जाति का संघर्ष और प्रगति | Maanav Jaati Kaa Sangharshh Aur Pragati

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Maanav Jaati Kaa Sangharshh Aur Pragati by रामस्वरूप - Ramsvrup

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प्रकाशचंद्र सूरी - Prakashchandra Suri

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रामस्वरूप - Ramsvrup

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद पिछले मद्दायुद्ध की समाप्ति पर जमनी की सहमति--प्रजातन्त्र जमेनी के परराष्ट्र सचिवका नाम था काउण्ट बौकडाफ़ राजू । अपने कुछ सदकारियों के साथ वद्द वर्साई पहुंचा । ये लोग अपने भाग्य के सम्बन्ध में अभी तक कुछ मी नहीं जानते थे । ७ मई १४९२४ को जर्मनी के ये सब प्रतिनिधि कंदियों की-सी दशा में शान्ति परिषद्‌ के सन्मुख लाए गए । उन्हें लक्ष करके क्लीमेंशो ने एक भयंकर भाषण दिया जिस में गत महायुद्ध का सारा दोष जमेनी को दिया गया । जमेन परराष्ट्र सचिव ने अपने जवाब में एक बात की ओर विशेष निर्देश किया- पिछने ६ मदोनों में जब सम्पूर्ण जमेनी एक-एक पल गिन कर आपके निर्णय की प्रतीक्ष। करता रहा है वहां हज़ारों लाखों निर्दोष नागरिकों ने भूख से तकलीफ़ से बीमारी से तड़प-तड़प कर प्राण दिए हैं । ऐसे नाग- रिक जिन का युद्ध से कोई भी सम्बन्ध नहीं था । जत्र आप हमारे अपराध छोर उसकी सज्ञा की बात कहते हैं तो उन हज़ारों लाखों निरपराध जमेन नागरिकों का भी कुछ ध्यान रख लाएगा । जमेन परराष्ट्र सचिव के इस भाषण को गुस्ताखीमरा माना गया । सफ़ेद चमड़े की जिल्‍्द से मढ़ी एक बड़ी -सी पुस्तक जिसमें सन्धि की ४०० से ऊपर शर्तें दूजे थीं हस्ताक्षर के लिये उस के सामने कर दी गई । सन्धि की श्ते--शआखिरकार जमनी को सन्धि की शर्तों का पता लगा। ये शर्तें इतनी कठोर थीं कि जमंनी में कभी




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