कल्याण [वर्ष 26] [संख्या 1] | Kalyan [Varsh 26] [ Sankhya 1]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
63.52 MB
कुल पष्ठ :
890
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इढापत्र सुख भर्नेत अ्नेत कीरति बिसतारत ।
पद्म सकु पन श्रगट ध्यान उर ते नहिं टारत ॥
अैँसु कंबछ बासुकी अजित आग्या अनुवरती |
करकोटक तच्छक सुभट सेवा लिर धरती ॥
आगमोक्त सिवसंदिता मगर एकरस सजन रति ।
उरग अष्टकुल द्वारपति सावधान इरिघाम यथिति ॥
(श्री ) रामानुज ऊदार सुधानिधि अवनि कल्पतरु |
बिष्नुम्बामिं वोहित्य सिंधु ससार पार करु ॥
मध्वाचारज मेघर भक्ति सर ऊसर मभरिया |
निम्बादित्य अदित्य कुहर अग्यान जु हरिया |!
जनम करम भागवत धघरम समदाय थापी अघट ।
चोवीस प्रथम दरि वपु धरे ( त्यों ) चतुर्व्यूह कलिजुय प्रगट ॥
( रमा पघति रामानुज बिष्नुस्वामि त्रिपुरारि ।
निंवादित्य सनकादिका मधुकर गुरु सुखचारि || )
बिष्वकसेन सुनिनर्य सुपुनि सठकोप प्रनीता |
बोपदेव भागवत छत उधरधी नवनीता ॥
मयल मुनि श्रीनाथ पुडरीकान्छ परम जस ।
ः रामसिश्र रस रासि प्रगट परताप पराकुस ॥
। जामुन मुनि रामानुज तिमिर रन उदय भान ॥
संप्रदाय सिरोमनि सिंधुजा रच्यो भक्ति वित्तान ॥
गोपुर है आरूद ऊँच स्वर मत्र उचारथों ।
सूते नर परे जागि बहत्तरि श्रवननि धारथों ॥
तितनेई शुरुदेव पथति भईं न्यारी न्यारी |
। .. कुर तारक सिष्य प्रथम भक्ति बपु मगलकारी ॥
|| कृपनपाढ करना समुद्र रामानुज सम नहिं बियो ।
सदस आस्प उपदेस करि जगत उद्धरन जतन कियो ॥
श्रतिथ्रजा श्रतिदेव रिपिम पुदकर इम ऐसे |
श्रतिघामा श्रुति उदघि पराजित बामन जेंसे ॥
( श्री ) रामानुज गुरुबधु बिदित जग मगठकारी ।
सिवसटिता प्रनीत ग्यान सनकादिक सारी ))
पईदिरा पघति उदारधी सभा साखि सारंग करें |
प श्वतुर महँत दिग्गल चघुर भक्ति थूमि दाबे रहे ॥
(कोड) मालाधघारी मृतक बढ्यों सरिता मे आयो ।'
दाद कृत्य ज्यो बचु न्योति सब कुर्देब बुल्गयों ॥
नाम सकोचदिं बिप्र तबहिं दरिपुर जन आए ।
1. जेंवत देखे सबनि जात काहू नहिं पाए ॥|
हागलाचारज लच्छघा. प्रचुर मई महिमा जगति |
थी ) आचारज जामात की कथा सुनत हरि होइ रति ॥
1
के मक्तमाल + रण
ाधाण्णतााणा
गुरू गमन (कियो ) परदेस सिप्य सुरध्ुनी इढाई ।
एक मजन एक पान इदय बदना कराई ॥
गुरु गगा में प्रविति सिंष्य को बेगि बुठावों ।
वि'नुपदी भय जानि कमलपत्रन पर बायों ॥!
पाद पढूम ता दिन प्रगट; सब प्रसन्न सन परम रुचि ।
श्रीमारग उपदेस कृत श्रबन सुनी आख्यान सुचि ॥
देवाचारज दुतिय सहामहिमा हरियानेंद ।
तस्य राघवानद भए भक्तन को मानद ॥
पृथ्वी पत्रावर्लेब करी. कासी. अस्थाई ।
चारि बरन आश्रम संबरी को भक्ति दढाई ॥
तिन के रामार्नेद प्रगट बिश्वर्मेगढ जिन्द बपु धरथो |
( श्री ) रामानुज पद्धति प्रताप अवनि अमृत हू भनुसरयों ॥
अर्नतानद् कबीर सुखा (सुरखुरा) पद्मावति नरदरि।
पूंपा भावानंद रंदास बना सेन सुरसुर की घरहरि ॥
औरी सिप्य प्रसिष्य एक ते एक उजागर ।
विस्वमैंगठ आवबार सवर्निंद दसधा आगर ॥|
बहुत काल बपु धारि के प्रनत जनन कौ पार दियो ।
( श्री ) रामार्नेद खुनाथ ज्यों दुतिय सेतु जग तरन कियो ॥
जोगानद गयेस. करमचेंद अट्द पेद्वारी ।
( सारी ) रामदास श्रीरग अवधि शुन महिमा भारी ॥
तिन के नरहरि उदित मुदित मेद्ा मगछतन ।
रघुवर जदुबर गाइ बिमठ कौरति सच्यों धन ॥
हरिमक्ति सिंधु बेटा रचे पानि पद्मजा सिर दए |
अर्नैतानद पद परसि के लोकपाल से ते. मए ॥
जाके सिर कर घरथो तासु कर तर नहिं अड्ड्यो ।
आप्यो पद निर्वान सोक निर्भय करि अइ्झ्यो ॥
तेजपुज बढ भजन महामुनि ऊरघधरेता |
सेवत नवरन सरोज राय राना भुवि नेता |
ढाहिमा बस दिनकर उदय सत कमड हिय सुख दियो ।
निर्वेद अवधि कठि कृष्वदाम अन परिहरि पय पान कियों ॥
की अगर केवल चरन ब्रत हटी नरायन |
सूरज पुरुषा प्रथू तिपुर हरि भक्ति परायन ॥|
पद्मनाभ गोपाठ टेक टीला. गदाधारी |
देवा दम कब्यान गग गगासम नारी ॥
विप्लुदाम कन्टर रेंगा चॉदन सविरि गोबिंद पर |
पेहारी परसाद ते सिष्य से मए पार कर ||
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