कल्याण [वर्ष 26] [संख्या 1] | Kalyan [Varsh 26] [ Sankhya 1]

Book Image : कल्याण [वर्ष 26] [संख्या 1] - Kalyan [Varsh 26] [ Sankhya 1]

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सन ा-गााााएणुिघधुधगा्लालतल्‍अअवअ--उवुअअएगडधटअएाएागगएगएयएतए। गाया ननागयललशशयनशटनाशनायियल्‍तल्‍एएल्‍एएएएएल्‍इएस।एएएएपटटयययप इढापत्र सुख भर्नेत अ्नेत कीरति बिसतारत । पद्म सकु पन श्रगट ध्यान उर ते नहिं टारत ॥ अैँसु कंबछ बासुकी अजित आग्या अनुवरती | करकोटक तच्छक सुभट सेवा लिर धरती ॥ आगमोक्त सिवसंदिता मगर एकरस सजन रति । उरग अष्टकुल द्वारपति सावधान इरिघाम यथिति ॥ (श्री ) रामानुज ऊदार सुधानिधि अवनि कल्पतरु | बिष्नुम्बामिं वोहित्य सिंधु ससार पार करु ॥ मध्वाचारज मेघर भक्ति सर ऊसर मभरिया | निम्बादित्य अदित्य कुहर अग्यान जु हरिया |! जनम करम भागवत धघरम समदाय थापी अघट । चोवीस प्रथम दरि वपु धरे ( त्यों ) चतुर्व्यूह कलिजुय प्रगट ॥ ( रमा पघति रामानुज बिष्नुस्वामि त्रिपुरारि । निंवादित्य सनकादिका मधुकर गुरु सुखचारि || ) बिष्वकसेन सुनिनर्य सुपुनि सठकोप प्रनीता | बोपदेव भागवत छत उधरधी नवनीता ॥ मयल मुनि श्रीनाथ पुडरीकान्छ परम जस । ः रामसिश्र रस रासि प्रगट परताप पराकुस ॥ । जामुन मुनि रामानुज तिमिर रन उदय भान ॥ संप्रदाय सिरोमनि सिंधुजा रच्यो भक्ति वित्तान ॥ गोपुर है आरूद ऊँच स्वर मत्र उचारथों । सूते नर परे जागि बहत्तरि श्रवननि धारथों ॥ तितनेई शुरुदेव पथति भईं न्यारी न्यारी | । .. कुर तारक सिष्य प्रथम भक्ति बपु मगलकारी ॥ || कृपनपाढ करना समुद्र रामानुज सम नहिं बियो । सदस आस्प उपदेस करि जगत उद्धरन जतन कियो ॥ श्रतिथ्रजा श्रतिदेव रिपिम पुदकर इम ऐसे | श्रतिघामा श्रुति उदघि पराजित बामन जेंसे ॥ ( श्री ) रामानुज गुरुबधु बिदित जग मगठकारी । सिवसटिता प्रनीत ग्यान सनकादिक सारी )) पईदिरा पघति उदारधी सभा साखि सारंग करें | प श्वतुर महँत दिग्गल चघुर भक्ति थूमि दाबे रहे ॥ (कोड) मालाधघारी मृतक बढ्यों सरिता मे आयो ।' दाद कृत्य ज्यो बचु न्योति सब कुर्देब बुल्गयों ॥ नाम सकोचदिं बिप्र तबहिं दरिपुर जन आए । 1. जेंवत देखे सबनि जात काहू नहिं पाए ॥| हागलाचारज लच्छघा. प्रचुर मई महिमा जगति | थी ) आचारज जामात की कथा सुनत हरि होइ रति ॥ 1 के मक्तमाल + रण ाधाण्णतााणा गुरू गमन (कियो ) परदेस सिप्य सुरध्ुनी इढाई । एक मजन एक पान इदय बदना कराई ॥ गुरु गगा में प्रविति सिंष्य को बेगि बुठावों । वि'नुपदी भय जानि कमलपत्रन पर बायों ॥! पाद पढूम ता दिन प्रगट; सब प्रसन्न सन परम रुचि । श्रीमारग उपदेस कृत श्रबन सुनी आख्यान सुचि ॥ देवाचारज दुतिय सहामहिमा हरियानेंद । तस्य राघवानद भए भक्तन को मानद ॥ पृथ्वी पत्रावर्लेब करी. कासी. अस्थाई । चारि बरन आश्रम संबरी को भक्ति दढाई ॥ तिन के रामार्नेद प्रगट बिश्वर्मेगढ जिन्द बपु धरथो | ( श्री ) रामानुज पद्धति प्रताप अवनि अमृत हू भनुसरयों ॥ अर्नतानद्‌ कबीर सुखा (सुरखुरा) पद्मावति नरदरि। पूंपा भावानंद रंदास बना सेन सुरसुर की घरहरि ॥ औरी सिप्य प्रसिष्य एक ते एक उजागर । विस्वमैंगठ आवबार सवर्निंद दसधा आगर ॥| बहुत काल बपु धारि के प्रनत जनन कौ पार दियो । ( श्री ) रामार्नेद खुनाथ ज्यों दुतिय सेतु जग तरन कियो ॥ जोगानद गयेस. करमचेंद अट्द पेद्वारी । ( सारी ) रामदास श्रीरग अवधि शुन महिमा भारी ॥ तिन के नरहरि उदित मुदित मेद्ा मगछतन । रघुवर जदुबर गाइ बिमठ कौरति सच्यों धन ॥ हरिमक्ति सिंधु बेटा रचे पानि पद्मजा सिर दए | अर्नैतानद पद परसि के लोकपाल से ते. मए ॥ जाके सिर कर घरथो तासु कर तर नहिं अड्ड्यो । आप्यो पद निर्वान सोक निर्भय करि अइ्झ्यो ॥ तेजपुज बढ भजन महामुनि ऊरघधरेता | सेवत नवरन सरोज राय राना भुवि नेता | ढाहिमा बस दिनकर उदय सत कमड हिय सुख दियो । निर्वेद अवधि कठि कृष्वदाम अन परिहरि पय पान कियों ॥ की अगर केवल चरन ब्रत हटी नरायन | सूरज पुरुषा प्रथू तिपुर हरि भक्ति परायन ॥| पद्मनाभ गोपाठ टेक टीला. गदाधारी | देवा दम कब्यान गग गगासम नारी ॥ विप्लुदाम कन्टर रेंगा चॉदन सविरि गोबिंद पर | पेहारी परसाद ते सिष्य से मए पार कर ||




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now