कल्याण कुञ्ज | Kalyan Kunj Bhag-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.81 MB
कुल पष्ठ :
133
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि
वेराग्य और अभ्यास
« जबतक मोगेमिं वैराग्य नहीं होगा, तत्रतक ययार्थ निष्काम
कर्म, भक्ति और ज्ञान इनमेंसे किसीकी प्राप्ति नहीं हो सकेगी )
चैराग्यके आाधारपर ही ये साधन टिकते हैं ओर बढ़ते हैं । इसीठिये
अम्यासके साथ वैराग्यकी आवश्यकता बतढायी गयी है । बिना
बैराग्यका अम्यास प्राय५ आडम्बर उत्पन्न करता है ।
रद है ६ है
जिनके मनमें वैराग्य नहीं हैं, जो भोगोंमें रचे पचे हैं तथा
भोग-वासनासे ही कर्म, भक्ति, ज्ञानका आचरण करते हैं; वे छोग
पापाचरण करनेवाले तया कुठ भी न करनेवाठोंसे इजारों दर्जे
छच्छे अपश्य हैं, परन्तु वास्तविक निष्काम कर्म, भक्ति, ज्ञानका
साधन उनसे नहीं दो रद्दा है । और वे जो कुठ करते हैं, उसके
छूठनेकी भी आदाक्का बनी हो है । «
श्र श्द है अ श्
स्वार्थस्याग बिना निष्कामता नहीं आती, दूसरे सब पदायेसि
श्रीति दटाये यिना भगयानसे एकान्त प्रीति नददीं होती और जगत-
के रागसे छूटे गिना अभेदज्ञान नदीं होता । आज निप्वाम कर्म,
भक्ति और ज्ञानके अर्पिकादा साथफ स्वार्थ, पिपरप-प्रेम और शासक्ति-
का त्याग करनेगी चेटट बिना किये हो निप्याम यर्मी, भक्त और
ज्ञानी बनसा चाइते हैं | इसीसे वे सफल नहीं दो सफने ।
प्र श६् जद श
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