कल्याण कुञ्ज | Kalyan Kunj Bhag-i

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Kalyan Kunj Bhag-i by शिव - Shiv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि वेराग्य और अभ्यास « जबतक मोगेमिं वैराग्य नहीं होगा, तत्रतक ययार्थ निष्काम कर्म, भक्ति और ज्ञान इनमेंसे किसीकी प्राप्ति नहीं हो सकेगी ) चैराग्यके आाधारपर ही ये साधन टिकते हैं ओर बढ़ते हैं । इसीठिये अम्यासके साथ वैराग्यकी आवश्यकता बतढायी गयी है । बिना बैराग्यका अम्यास प्राय५ आडम्बर उत्पन्न करता है । रद है ६ है जिनके मनमें वैराग्य नहीं हैं, जो भोगोंमें रचे पचे हैं तथा भोग-वासनासे ही कर्म, भक्ति, ज्ञानका आचरण करते हैं; वे छोग पापाचरण करनेवाले तया कुठ भी न करनेवाठोंसे इजारों दर्जे छच्छे अपश्य हैं, परन्तु वास्तविक निष्काम कर्म, भक्ति, ज्ञानका साधन उनसे नहीं दो रद्दा है । और वे जो कुठ करते हैं, उसके छूठनेकी भी आदाक्का बनी हो है । « श्र श्द है अ श् स्वार्थस्याग बिना निष्कामता नहीं आती, दूसरे सब पदायेसि श्रीति दटाये यिना भगयानसे एकान्त प्रीति नददीं होती और जगत- के रागसे छूटे गिना अभेदज्ञान नदीं होता । आज निप्वाम कर्म, भक्ति और ज्ञानके अर्पिकादा साथफ स्वार्थ, पिपरप-प्रेम और शासक्ति- का त्याग करनेगी चेटट बिना किये हो निप्याम यर्मी, भक्त और ज्ञानी बनसा चाइते हैं | इसीसे वे सफल नहीं दो सफने । प्र श६् जद श




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