तान कल्पद्रुम | Santan-kalpdurm

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Santan-kalpdurm by पं. रामेश्वरानन्द जी - Pt. Rameshwaranand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रैक जे नियमके विरुद्ध है । यह सब नियमानुकूल है; परंतु उत्तम और शुणवान्‌ वीर सन्तान उत्पन्न करनेके जो कायदे आयुर्वेदमें पाये जाते हैं उनके अनुसार सन्तान उत्पन्न करनेकी प्रणारठीसे इस समयके खी-पुरुप विठकुछ अनसिश्ञ हैं । व्तेमानसें कितने दी विद्वादोने.... -उत्पत्तिके विषयमे वहुत्त काठ पय्येन्त अभ्यास करके कितने दी तरीके और प्रयोग अनुभव करके सिद्ध किये हैं. कि वाऊकोंकी इत्पत्ति उच्च श्रेणीके मनुष्य वननेकी हो, और प्रत्येक आय्य स््री-पुरुष अपनी सन्तान- म्रणाठीकों सुधारकर दश् श्रेणीपर ले जानेके कायदोंको काममें लछावें, वस यही हमारा प्रयोजन है । पर्वत आदि स्थानोंकी उचची जगदसे जल प्िरकर नदीके प्रवाह रूपम बद्दता है; क्योंकि उची जमीनपरसे नीची जमीनकी तरफ जलका बददना यद्द कुदरती नियम है, और फिर वहद नीचे समुद्रमें जा मिठता है । परंतु उस नदीमेंसे नहर निकालकर रुक्षभूमिमें अन्न और नाना प्रकारकी वनस्पतियों उत्पन्न करके देठको आवाद करना यदद मचुष्यकृत्त संशोधन प्रजावगंको सुखदायी है. और कुदरत- के कायदेसे यथाथ काम छेना है । इसी प्रकार सन्तान उत्पन्न दोना कुदरती नियम है। सन्तानोंको सैँभाठकर उत्पन्न करने की जो किया विद्वानोंने निकाली है उसके अनुसार कुद्रत्तके साथ घुद्धिका संयोग करके सन्तान उत्पन्न करनेसे उत्तम श्रेणी - को बुद्धिमान, विद्वान, साइसी और वीर सन्तान उत्पन्न हो सकती है कर कई लोगोंका सिद्धान्त दे कि देश वा मनुष्य लातिकी भलाई कंवल उच्च श्रेणीकी शिक्षापर दी अवछम्वित है । परन्तु




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