तान कल्पद्रुम | Santan-kalpdurm
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.13 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रामेश्वरानन्द जी - Pt. Rameshwaranand Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रैक जे
नियमके विरुद्ध है । यह सब नियमानुकूल है; परंतु उत्तम और
शुणवान् वीर सन्तान उत्पन्न करनेके जो कायदे आयुर्वेदमें
पाये जाते हैं उनके अनुसार सन्तान उत्पन्न करनेकी प्रणारठीसे
इस समयके खी-पुरुप विठकुछ अनसिश्ञ हैं । व्तेमानसें कितने
दी विद्वादोने.... -उत्पत्तिके विषयमे वहुत्त काठ पय्येन्त
अभ्यास करके कितने दी तरीके और प्रयोग अनुभव करके
सिद्ध किये हैं. कि वाऊकोंकी इत्पत्ति उच्च श्रेणीके मनुष्य
वननेकी हो, और प्रत्येक आय्य स््री-पुरुष अपनी सन्तान-
म्रणाठीकों सुधारकर दश् श्रेणीपर ले जानेके कायदोंको काममें
लछावें, वस यही हमारा प्रयोजन है । पर्वत आदि स्थानोंकी
उचची जगदसे जल प्िरकर नदीके प्रवाह रूपम बद्दता है; क्योंकि
उची जमीनपरसे नीची जमीनकी तरफ जलका बददना यद्द
कुदरती नियम है, और फिर वहद नीचे समुद्रमें जा मिठता है ।
परंतु उस नदीमेंसे नहर निकालकर रुक्षभूमिमें अन्न और
नाना प्रकारकी वनस्पतियों उत्पन्न करके देठको आवाद करना
यदद मचुष्यकृत्त संशोधन प्रजावगंको सुखदायी है. और कुदरत-
के कायदेसे यथाथ काम छेना है । इसी प्रकार सन्तान उत्पन्न
दोना कुदरती नियम है। सन्तानोंको सैँभाठकर उत्पन्न करने
की जो किया विद्वानोंने निकाली है उसके अनुसार कुद्रत्तके
साथ घुद्धिका संयोग करके सन्तान उत्पन्न करनेसे उत्तम श्रेणी -
को बुद्धिमान, विद्वान, साइसी और वीर सन्तान उत्पन्न हो
सकती है कर
कई लोगोंका सिद्धान्त दे कि देश वा मनुष्य लातिकी
भलाई कंवल उच्च श्रेणीकी शिक्षापर दी अवछम्वित है । परन्तु
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