संतान कल्पद्रुम | Santan Kalpdrum 1921 Ac 911

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Santan Kalpdrum  1921  Ac 911 by पं. रामेश्वरानन्द जी - Pt. Rameshwaranand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४. इस देखते हें कि इस समय पश्चिमी आपाकी छश्ष अेणीकी दिक्षा्दकषाप्राप्त जितने ठोग उपस्थित हैं उनमेंसे देश और जाति- के शुमचिन्तक धडडत्त दी थोड़े माईके छा हैं । बाकी मान- मरयादाके मदमें डूब हुए अपने जातिभाइयोंको तुच्छ समझते है और मनुष्य मात्रके ऊपर अपने शुरूर गये का दख जमाते हैं । ऐसे मनुष्योंसे देश तथा जातिकी कुछ भी भाई नहीं होती । इस कथनसे कोइ यह न समझे कि दम उच्च श्रेणी- की शिक्षाके विरोधी है। नदी हमारा कथन यह दे कि उच्च श्रेणी- की दिक्षाके लिये उत्तम और श्रेष्ठ संस्कारयुक्त रज-चीय्यंसे सन्तान उरपन्न होनी चाहिए । जैसे एक बीजसे एक व्रक्षक उत्पन्न होनमें प्रथवी खाद जलवायु और धूप वमैरदकी आवइयकता हैं और इन सबके असुकूढ होनेपर भी यदि बीज उत्तम और दोषरदित न हो तो युक्त और यथाधथे साधन होनेपर भी दृश्चकों कल्पदुम नहीं बना सकते । इसी प्रकार बाछककी उत्पत्तिके ढिये माता-पिताका रजवीय्य दु्ुणोंसे दूषित और मानसिक शक्तिके उत्तम सस्कारोंसे रहित होतो ऐसे रज-बीयसे उत्पन्न हुए सन्तानकों उच्च श्रणीकी शिक्षा नही संभाल सकनी । इस बातक इजारों हृष्टान्त इस समय देशमे उपस्थित है । हजारो मनुष्य उच्च श्रेणीकी शिक्षा प्राप्त करके देश ओर जातिकी भलाईसे बदिमुख हैं जबद्स्त- की खुशामद और सेवासे अपनी उच्च ेणीकी शिक्षाका दूषित कर रहे हैं जबद्रनका आश्रय छेकर देशकी भलाई चाइनेवाछो- को गारत कर रहे हैं । इसका मुख्य कारण यद्दी दे कि उच्च श्रेणी- की दिक्षा प्राप्त करने पर भी वे उसम मेणीके मनुच्य नहीं बनते




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