पिंगल - सार | Pingal Saar

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Pingal Saar by रामकवि - Ramkavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९३ ) सूचना--(क) सम्वतादि वड़ी संख्यामें केवल ६ तक के अंक काममें आते हैं । (ख) उक्त नामोंके अतिरिक्त इनके पर्य्याय-चाची शब्द भी लिखे जा सकते हैं । (ग) 'छोक' शब्द ३ का भी वोधक है और ७ का भी 'दोप' ३ और १०का सूचक है । ऐसे भ्रमों- त्यादक शब्द जिनके एकसे अधिक अर्थ हों न छिखो । (घ) इकाई, ददाई, सें कड़ा, हज़ार आदिकी आप जानते ही हैं । इकाईके वाद वाई ओरकों जो दूसरा अड्ड लिखते हैं वह दाई, तीसरा सं कड़ा, चौथा हज़ार है इसो क्रमके अनुसार संख्या चाचक शब्दोंसे भी संख्या वनाते हैं । जैसे ३६ लिखना है. तो यूं कहेंगे ऋतु+-गुण | या दुर्शन+ काल। २४६ लिखना हैतो अड्+वेद+नेत्र इत्यादि छन्दके लचण जिस वाक्यरचनामें मात्राओंकी समान गिनती, लघु गुरु वर्णोका क्रम, विराम, ( अर्थात्‌ किसी स्थानमें ठहरना, इसीकों “यत्ति” कहते हैं ) गति, और प्रास आदिका नियम पाया जाय चह छन्द है। छन्द दो प्रकारके होते हैं. “वैदिक” “लौकिक” । पे




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