वेदों का यथार्थ स्वरूप | Vedon Ka Yatharth Swaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषयानुक्रमरिका श्प्र वेद विषयक प्रयत्न अधिकतर पक्षपातपुर्ण प्रो० मंक्समूलर के ड्यूक श्रागयिल श्रौर अपनी पत्नी के नाम पत्र श्री श्ररविन्द द्वारा इन पाइचात्य विद्वानों को वेद विषपक घारणाओं की निष्पक्ष आलोचना श्री रमेदाचन्द्रदत्त लोकमान्य तिलक श्री अ्विनाशचन्द्र दास श्री द्विजेन्द्रदास इत्यादि पर पाइचात्य सररि का प्रभाव वदिक एज के लेखकों को अनुकररण प्रबत्ति महूधषि दयानन्द का वेदों के महत्त्व विषयक सिहनाद उस समय वेदों की उपेक्षा राजा रामसोहन राय और वेद श्री शंकराचायें रामाचुजाचाय वत्लभाचार्यादि मध्यकालीन आचार्यों के वेदाधिकार विषयक श्रनुदार विचारों से तुलना रोसां रौलां की महर्षि दयानन्द को उदारता के प्रति श्रद्धांजलि सुप्रसिद्ध योगी श्री अरविन्द के वेद श्र सायरणभाष्य तथा महर्षि दयानन्द के वेद भाष्यादि विषयक विचार । द्वितीय अ्रध्याय . वेदों का महत्त्व और उसके कारण--विविध मतावलम्बी विद्वानों द्वारा समर्पित श्रद्धांजलियां पु० ६३-११० ईदवरीय ज्ञान की आवद्यकता सम्राट श्रसुरवाणीपाल सम्राट फ़डरिक बादशाह अकबर श्रादि के परीक्षण हैवल का मत सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डा० फ्लेमिज् द्वारा ईश्वरीय ज्ञान की श्रावइ्यकता का ससथंन सुविख्यात प्लेटो कान्ट इत्यादि द्वारा इस का श्रनुमोदन सदसद्विवेकबुद्धि को श्रपर्याप्तता प्रकृतिवादियों की युक्तियों का विवेचन प्रकृति में जिस की लाठी उस की भंस पारसी विद्वान फर्दून दादा चान जी द्वारा वेरों को श्रद्धांजलि वेदों में श्रग्ति के भौतिक श्रौर श्राध्यात्तिक श्रर्थ वेदों में विशद्ध एफेइवरवाद जेन दिद्वान श्राचायं कुमुदेन्डु द्वारा वेद को अनादि निधना श्रादिसगवद्वारणी कहना रब के विद्वान लाबी द्वारा वेदों का गुणगान दारा शिफोह का वेद को ईश्वरीय ज्ञान सानना डा० रसेल वलेस रेवरेन्ड मौरिस फिलिप प्रो० हीरेन लेग्रों देल्बों नोबल पुरस्कार विजेता श्री मेटलिंक थोरियो डा० जेम्सकजिन्स रूसी बिद्वान्‌ श्री बौलंगार मि० मास्करो मि० ब्राऊन शौपनहार रागोजिस जेकोलियट मिसेज छ्लोलर आदि निष्पक्ष पाइचात्य दिद्वानों श्रौर विदुषियों हारा वेद का महत्त्व स्वीकार करना वेद हो ईदवरोय ज्ञान क्यों ? बाइबल की अनेक तक तथा विज्ञान विरुद्ध बातें बरमिद्भुम के बिदाप डा० बान्सं का एत- ट्विबयक भाषण वेदों में विविध विद्याओं का मूल निर्देश । तुतीय अध्याय ऋषि मन्त्रकर्ता नहीं मन्त्रद्रष्टा थे पु० १११--१५९ कई आधुनिक विद्वानों के मत में ऋषि मन्त्रकर्ता इस सत की परीक्षा ऋषयो सन्त्रद्रष्टार । इत्यादि वचन ।




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