पूंजी [भाग-1] | Punji [Bhag-1]

Punji [Bhag-1] by कार्ल मार्क्स - Karl Marx

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कार्ल मार्क्स - Karl Marx

Add Infomation AboutKarl Marx

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सूद स्व भरोसा लि दि (पक रेस क्न्धू कु 9 िफी पं कि शा रा? पा कसी रूपए 3 गन पी >> गम फी न्ग पननम पं उप रछ पिि लिया दिए देगी स्व कण न लक रन ही ही स््स्व 9... स् रन कफ ने जैज्ब्दय चुके ए तीन व दर: ने था पीलिननिग ऊट 4 नली धिि, 9... नव जन न प्ज रटुए_ नी १६ भ्रगस्त १८६७ को मार्क्स द्वारा एंगेल्स को लिखे गये एक पत्र की झ्नुलिपि (चित्र में झाकार छोटा कर दिया गया है) १६ झगस्त १८६७, दो बजे रात प्रिय फ्रेंड , किताब के भाल़िरी फ़र्म (४६ वें फर्में) को शुद्ध करके मैंने झभी-अभी काम समाप्त किया है। परिशिप्ट- मूहय का रुप-छोटे टाइप में -सवा फ़ेमें में श्राया है। भूमिका को भी शुद्ध करके मैने कल वापिस भेज दिया था। सो यह खण्ड समाप्त हो गया है। उसे समाप्त करना सम्भव हुमा , इसका श्रेय एकमात्र तुमको है। तुमने मेरे लिये जो 'भात्मत्याग किया है, उसके अभाव में मैं तीन खण्डों के लिये इतनी ज़बईस्त मेहनत सम्भवतः हरगिज़ न कर पाता । हृतज्ञता से भोत-प्रोत होकर मै तुम्हारा भालिंगन करता हुं! दो फ़र्में इस खत के साथ रख रहा हूं, जिनका प्रूफ में देख चुका हूं । १५ पौंड मिल. गये थे , धन्यवाद । नमस्कार , मेरे प्रिय , स्नेही मित्र ! तुम्हारा बाल साक्स




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now