श्री इप्टोपदेश टीका | Shri Iptopdesh Tika

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Shri Iptopdesh Tika by शीतालप्रसाद वैध - Sheetalprasad Vaidh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१८) दीखते थे | आपके कुटुम्बमें धनकी वृद्धि दोनेमें मूढ उद्योगी आप थे | आपके सुपुत्र बराप्तीडाठ भी आपके दी जीवनका भनुसरण कर रहे हे और धर्म थ नातिकी सेवामें अच्छी तरह लवछीन हैं। शापने कभी अपना फोटो नहीं लिवाया था जिससे हम आपका फोटो देनेसे लाचार हैं, इस लिये हमने उनके सूपुन्न घरातीलालजीका ही फोटो देना उचित समझा । क्योंकि पुन्रका चित्र पिताके चित्रफा भाव अतरग्ें खींच सक्ता दै। भापफे मनमें (किसी धर्म कार्यकों करनेकी इच्छा थी. कि निसमें छपनी सम्पत्तिको,अ सफल करें, परन्तु यकायक कालका मास हो जानेसे छाप नहीं कर सके | अब उनके लपुश्नाता तथा उनके सुपुनने विचार किया कि अपने कुटुम्बमें प्ररूट १ आादर्श पुर्प ही स्पतिमें कोई विशेष धर्मका कार्य करें । इसी लिये यदद “इष्टो पदेंचा”” ग्रन्थ उनके सुपूत्र लाला बरातीलालजीने उनकी स्पृतिमें प्रशशित करके ज्ञानदानका यह एक प्रशप्तनीय कार्य किया है । इसी तरह और भी अन्य कोई बड़ा काम -करके अपने फपिताकि यदको चिरकालू भाम्रत रखना चादिये 1 धर्म भथे जौर काम पुरुपार्थोकि साधक एक नमूनेदार गृद्हथका नाम यदि देखना दो तो लखनऊ निवाप्ती छाला दामोदर दासजीका स्मरण कर लेना चाहिये | सापडी स्पृतिमें जो यह 'इोपदेश' अथ प्रकाशित हो रदा दे वह मनुष्य समानके डिये बहुत ही उपयोगी है । समान सेवक-मलचंद किसनदास कापडिया; प्रकाधक ।




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