उन्मुक्त प्रेम | Unmukt Prem

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| न” छ्््प न्न्भझ्ज नह यू रूप से जुदा है ।” “प्तो छापने यट क्यों खेला १ यदि कहीं द्वानि दो जाती तो ?” पप्यात यद है कि छाजकल कम्पनियों के 'बंलेंस-शीट' निकलते है तर टाटा कम्पनी इस वर्ष भारी लाभ दिखाने चाली थी । मुके दरबार पढ़ने से कुछ ऐसा भ्रनुमान हो गया था । इससे सु्ते विश्वास था कि हिस्सों के दाम चढ़ जायेंगे । परन्तु यह तो ्त्यधघिक चढ़ाव हैं । थ्वश्य किसी ने चालाकी खेली हूं ।”” “तो फिर £” “फिर क्या ! मैं श्रमी सिन्डीकेट में टैलीफून कर दिस्से वेच देता हूँ। श्रब देरी नहीं करनी चाहिये । कल कुछ गढ़वड़ भी हो सकती है |” इतना कद मोदनलाल धोती-कुर्त से ही बाज़ार टेलीफून करने के लिये चला गया । सुधा इस एकाएक रुपयों की वर्पा पर घिस्मय में; घिना कुछ समझे, बैठी रही । जब्र मोदनलाल वापिस श्राया तो सुधा ने पूछा; “टिस्ते बिक गये १” “टां, रुपया कल चेक से मिल जायेगा [”” “मेँ एक वात आपसे कहूँ | मानियेगा १” “हों, कहो क्या चात दै ( “पाप फिर ऐसा व्यापार ने करें |”? क्यों ट्श “इसमें तो कहीं घोखा-घड़ी प्रतीत दोती है । में बहुत पढ़ी-लिखी तो नहीं | इस पर भी एक चात तो समभती हूँ कि बिना मददनत किये जो कमाई होती है वह पचती नहीं |” मोदनलाल हंस पड़ा । सुधा ने सातवीं-ग्राठवीं श्रेणी तक शिक्षा पाई थी । वदद समकता था कि श्रर्थ-शास्त्र से अनमिज्ञ होने के कारण दी बह उसे इस काम से मना करती है । इस कारण वह उसे समभाने के लिये कहने लगा, “इस ज़माने में प्रायः श्राधी दुनिया इसी प्रकार की कमाई करती है ।




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