उन्मुक्त प्रेम | Unmukt Prem
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.79 MB
कुल पष्ठ :
462
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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यू रूप से जुदा है ।”
“प्तो छापने यट क्यों खेला १ यदि कहीं द्वानि दो जाती तो ?”
पप्यात यद है कि छाजकल कम्पनियों के 'बंलेंस-शीट' निकलते है
तर टाटा कम्पनी इस वर्ष भारी लाभ दिखाने चाली थी । मुके दरबार
पढ़ने से कुछ ऐसा भ्रनुमान हो गया था । इससे सु्ते विश्वास था कि
हिस्सों के दाम चढ़ जायेंगे । परन्तु यह तो ्त्यधघिक चढ़ाव हैं । थ्वश्य
किसी ने चालाकी खेली हूं ।””
“तो फिर £”
“फिर क्या ! मैं श्रमी सिन्डीकेट में टैलीफून कर दिस्से वेच देता हूँ।
श्रब देरी नहीं करनी चाहिये । कल कुछ गढ़वड़ भी हो सकती है |”
इतना कद मोदनलाल धोती-कुर्त से ही बाज़ार टेलीफून करने के लिये
चला गया । सुधा इस एकाएक रुपयों की वर्पा पर घिस्मय में; घिना
कुछ समझे, बैठी रही ।
जब्र मोदनलाल वापिस श्राया तो सुधा ने पूछा; “टिस्ते बिक गये १”
“टां, रुपया कल चेक से मिल जायेगा [””
“मेँ एक वात आपसे कहूँ | मानियेगा १”
“हों, कहो क्या चात दै (
“पाप फिर ऐसा व्यापार ने करें |”?
क्यों ट्श
“इसमें तो कहीं घोखा-घड़ी प्रतीत दोती है । में बहुत पढ़ी-लिखी
तो नहीं | इस पर भी एक चात तो समभती हूँ कि बिना मददनत किये जो
कमाई होती है वह पचती नहीं |”
मोदनलाल हंस पड़ा । सुधा ने सातवीं-ग्राठवीं श्रेणी तक शिक्षा
पाई थी । वदद समकता था कि श्रर्थ-शास्त्र से अनमिज्ञ होने के कारण
दी बह उसे इस काम से मना करती है । इस कारण वह उसे समभाने के
लिये कहने लगा, “इस ज़माने में प्रायः श्राधी दुनिया इसी प्रकार की
कमाई करती है ।
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