भारतीय आर्य भाषा और हिन्दी | Bhartiya -arya Bhasha Aur Hindi

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Bhartiya -arya Bhasha Aur Hindi by डॉ० सुनीतिकुमार चाटुजर्या - Dr. Suneetikumar Chatujryaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विभिन्न भाषा-कुल ७ श्रध्ययन करते समय झ्राई थी । संस्कृत भाषा के विषय में उनका उत्साह बढ़ता गया और उन्होंने का कि संस्कृत का गठन श्रद्धुत रूप से टी है यदद मीक की पूर्णता से भी बढ़कर है लेटिन से भी परिपुष्ट है नौ इन दोनों भाषाओं से संस्कृत कहीं झधिक सुसंस्कृत भाषा है । साथ हैं इन तीन भाषाओं की घातुझओं एवं व्याकरण में अत्यधिक साम्य झनुभव कर हुए उन्हें प्रतीत होने लगा था कि वास्तव में उनका उद्भव किसी एक ही भाषा से हुआ होगा जो कि झब लुप्त हो चुकी है। सर विल्षियम जॉन्स था माधीन पारसीक का यह भी विचार था कि जर्मन ऑॉथिक श्र केल्टिक तथा प्राचीन पार मी उसी कल की भाषाए हैं । जॉन्से को येद घारणा वास्तव में एक झत्यन्त चमत्कारपूर्ण सत्य एवं वैज्ञानिक कत्पना सिद्ध हुई श्र कुछ समय पश्चात्‌ वह भाषा-कुल्नों का सिद्धान्त प्रतिपादित करने में पथ-प्रदरशक हुई । साथ दी एक ही उद्गम-स्थान वाली विभिन्‍न भाषाओं के तुलनात्मक शध्ययन से घीरे-घीरे आधुनिक भाषा-विज्ञान का जन्म हुशा । यह कहना अतिशयोक्ति न दोगी कि आधुनिक भाषा-विज्ञान का जन्म उसी घड़ी में हुआ जबकि संस्कृत ग्रीक लेटिन तथा गा थिक एवं प्राचीन पारसीक भाषाओं का एक ही कुल से सम्भूत होने की चमत्कारपूर्ण सूक सर_विलियम जोन्स के मस्तिष्क में आई । यूरोप एशिया श्रफ्रीका ऑस्ट्र लिया अशिनिया एवं श्रमरीका में जिन विभिन्‍न साषा-कुल्ों से सम्बन्धित भाषाएँ तथा बोलियँ बोली जाती हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण मारतीय-झार्यभाषा ही दै । प्रथ्वी पर इसके बोलने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है झौर इसके अन्तर्गत कुछ ऐसी झ्रत्यन्त प्रभावशाली प्राचीन एवं अर्वाचीन भाषाएँ रा जाती हैं जिनका स्थान मानव की प्रगति के इतिहास में पिछले पच्चीस सौ वर्षों से सर्वत्र रददा है हा संसार में झन्य भी कई बढ़े भाषा-कुल हैं उदाहरणाथ--सेमिटिक-कुल ( री- बाबिलोनी ैं हि रैफीनीशियन रँसीरीयक्‌ झरबी साबीयन्‌ गैटूथियो- पियन झऔर हृब्शी ) ट्रैमिटिक-छुल ( प्राचीन मिली कॉ प्टिक त्वारेग कबाइल श्बौर झल्य 9८0८7 बबैर भाषाएं सुमाली फुलानी इत्यादि) चीनी- तिव्बती या सोट-चीनी ( सिनिक या चीनी दे या थाइ श्र्थात्‌ स्यामी म्रन्मा या ब्रह्म बोदू या भोट यथा तिवेबती भारत-बह्ा सीमान्त प्रदेशीय भाषाएँ इत्यादि ) यूराली ( मग्यर फिन्‌ एस्थ लाप वोगुल श्रोस्त्याक्‌ ) ल्टाई ( तुर्की साषाएँ मंगोली श्र मंचू ) द्राविड़ी (तमिल मलयालम कन्नढ तेलुगु गॉंड इत्यादि तथा बाहुई ) ऑस्ट्रिक ( भारत की कोल या मर रियल नर गये मृत माषाएँ हैं ।




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