हिन्दी भाषा : विकास और विश्लेषण | Hindi Bhasha : Vikas Aur Vishleshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
359
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६)
जर्मनी : इसकी एक उपशाखा पूर्वी जर्मन या गाथिक थी, जो अब मृत है ।
नाडिक और पश्चिम जर्मन (इसमें अंग्रेजी भी है) जीवित शाखाए हैं ।
[--तोखारी (10००४०॥) $ इसके रूप चीनी-तुकरिस्तान में प्राप्त कुछ
बोद्ध हस्तलेखों में सुरक्षित हैं। इनका समय ६ वीं और १० वीं शती के बीच में हैं ।
इसकी दो बोलियाँ है जिन्हें सुविधा के लिए & और 9 कहा जाता है।
>--6हित्ती (100०) अनातोलिया के बोगजकाई स्थान से प्राप्त कुछ
5प्पों के लेखों में यह सुरक्षित है। इन लेखों का समय १९ वीं शती ई० पृ० से
२० वीं शती ई० पृ० तक माना जाता है। भारोपीय भाषाओं का इससे प्राचीन
प्रमाण अप्राप्य है । इसकी खोज ने अनेक प्रदनों को जन्म दिया है।
उक्त शाखाए प्रमुख हैं | कुछ मृत शाखाओं की खोज भी हुई है । यहाँ उनका
संक्षिप्त विवरण भी अनावश्यक प्रतीत होता है। प्रस्तुत पुस्तक के विषय কা संबंध
मुख्यतः भारत-ईरानी या 'आयंवर्ग' से है। अतः इस पर कुछ विशेष विचार होना
अपेक्षित है । पर इससे पूर्व संक्षेप में आद्यमारोगीय या भारोपीय भाषाओं के मूल
स्त्रोत पर संक्षिप्त दृष्टिपात उपयुक्त होगा ।
१.२२ आद्यभारोपीय--उक्त शाखाओं में विभक्त होते से पूर्व भारोपीय का
मूल रूप जिस जन-पमह हारा बोला जाता था उसे वीरास' (शा109) नाम दिया
जाता है। वीरास' की रूप रेखा, उतके मानसिक विकास और शुद्ध रूप के सम्बन्ध
में आज कुछ भी निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता। ऐतिहाधिक युगों में जातीय
मिश्रण के परिणाम स्वरूप शुद्ध 'रक्त को बात हास्यास्पद ही है। 'वीरास' की
जातिगत विशेषताओ के संब्न्ध में विद्वानों ने सम्भावनाएं की हैं : 'बहुत संभव है ये
लम्बे, बृहतकाय, लम्बी नासिका बाले, गौरवण्ण, नीलाक्ष एवं हिरप्यकेश नाडिकः
(९००1०) नर के रहे हों, परन्तु इस विषय में भी विद्वानों को सन्देह है और यह
घारणा की गई है कि शायद ये अपनी मूल अवस्था से ही मिश्रित रक्त के हों ।१
आदि भारोपीय भाषा-भाषी इधर-उधर फंलते से पूर्व किस स्थान पर रहते
थे, इस प्रशन पर पर्याप्त विचार हुआ है पर कोई निश्चित एक मत निरूपित नहीं
हो सका है। एफ० माकस स्युलर (ए, 14४५ (ए०॥८7) ने अविभक्त वीरास का
आदि स्थान मध्य एशिया माना था । कुछ अन्य विद्वानों ने भी मध्य एशिया वाले
मत का समर्थन किया । यह तो सम्भव प्रतीत होता है कि ईरानी और भारतीय
जन मध्य एशिया से आये । किन्तु जमेन, कैल्ट (००४४) ग्रीक तथा योरुप के अन्य
जनों के पूर्वज मध्य एरिया से गये या इसके कभी समीप थे, इस बात की
सम्भावना और इसके प्रमाण शिथिल हैं 1* अतः दूसरा मत लैेघम ने प्रस्तावित किया
भारतीय-यूरोपीयों का आदिम स्थान 'कहीं न कहीं यूरोप' में होगा। इसके समर्थन
१ डा० सुनीति कमार चटर्जी, भारतीय अयं भाषा ओर हिन्दी , प० २०
২8000১11169 981751006 1.2050855) 7১. 9
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