पातंजल योग दर्शन तथा हरि भदरी योग वंशिका | Patanjal Yog Darshan Tatha Hari Bhadri Yog Vinshika

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Patanjal Yog Darshan Tatha Hari Bhadri Yog Vinshika by पं सुखलालजी संघवी - Pt. Sukhlalji Sanghvi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४) चण्णनके आधारसे की गई दै। फिर भी कई ज्गद शुटित पाठकी पूर्ति नहीं दो सकी । जहाँ कल्पनाद्वारा पूर्ति फ्री गई है चहाँ कोप्ठक आदि. खास चिद् किये हैं या नीचे फुट नोट सूचना की दे ! योगधिशिकाके सम्बन्धर्म भी घही वात दे क्योकि उसकी दीकाकी भी पक ही नकल मिढ सकी । उस एक नकछकों खोल नीकाछनेका श्रेय प्रचते कजी के दी स्वर्गवासी शिष्य मुनि श्री भक्तिथिजयजीकों ही है । घद्द पक नकल कालफे गालमे जा 'हो रही थी कि सौभाग्यवद्च उक्त मुनिज्नीकों मिठ गई | प्रसंग पैसा हुआ कि अमदाबादर्म किसी धावकके यहाँ कचरेके रूपमें “पुराने पन्ने पढे थे, जिनको उक्त मुनिज्ञीने देखा और उनमेसे उनको उपाध्यायज्ञी कृत योगरविदधिका टीकाकी पक अखंड नकल मिलछी जो उनके स्वहस्तलिखित ही है । यधपि उपाध्यायजीन थी दरिमद्रकृत घीसों विशिकारओंफे ऊपर टीका लिखी है जैसा कि योगर्िशिकाटीकाके इस अन्तिम उल्लेखसे सुपष्ट है इति मददोपाध्यायश्रीकल्याखविजयगणिशिष्यमुरुपपरिड- 'वश्रीजीतविजयगणिसती ध्यपरिडतश्रीनयविजय गणि चेरणक- मलचश्रीकपरिडतश्रीपग्यविजयगणिसदोद्रोप[ध्याय भीजस - विजयगाशिसमर्थितायां विशिकाप्रकरणव्यारूपायां योगर्विदि- 'काविवरण सम्पूर्णमू ॥ तथापि घस्तुत पक विशिकांकी टोकाके सियाय शेष 'उद्ीस चिंधिकाओकी रीकाएँ आज अनुपलब्ध दैं । न ज्ञाने थे साधाका प्रास दो गई, या क्दी अज्ात रूपसे उक्त पक टीकाको रद कुडे कचरेके रूपमें फिसी संप्रद ठोलुपकें द्वारा रक्षित




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