विद्यापति का अमर काव्य | Vidyapati Ka Amar Kavya

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Vidyapati Ka Amar Kavya by गोपालाचार्य - Gopalacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ जीवन से विद्यापति की इस सीमा तक की एकरूपता ने सम्भवतः विद्यापति के बंगदेजीय होने की ्ान्ति को जन्म दिया । ४. विद्यापति के युग का सिथिला सव था । लेकिन उनके * ग्रथिकां पद राधा-कृष्ण के डीवन से सम्बन्धित थे । यही कारण है कि विद्यापति विहार के तत्कालीन धार्मिक आन्दोलन से इतने बाहर चल गये कि सिहार वाले उनके मिथिलात्व तक को विस्यृत कर बेठे । विंद्यापति के प्रर्ति पिधिला की इस ्रनासक्ति ने बंगाली पिद्वारनों को विद्यापति के बंगालीकरण करने की प्रयाप्त छूट दे दी। विद्यापति के मेंथिल होने के प्रमाण १. भाषा वैज्ञानिक हृर्ष्टिकोंण से जोनवीन्स महोदय ने विद्यापति की पदांवली की भाषा कों बंगला नहीं माना । श्री प्रिंयसंत ने अपने ग्रंथ “एन इन्ट्रौडक्यन टू दि सैपिली लैन्वज आफ नाथें शिहार'” में मैथिली भाषा की स्वायत्तता सिद्ध की । नगेन्द्रवाय गुप्त महामंहोपाध्याय हर्रिप्रसाद दास्त्री प्रभृरति विद्वानों ने भीं इसीं मत को मान्यता प्रदान कीं 1 ... २. विद्यापति रचित ग्रन्यों की प्राचीन प्रतियाँ मिथिला के गावों में पाई गईहूँ। .. दर कु _ ३. मिथिला में पंजी प्रथा का प्रचलन है। १३२६ ई« में राजा हुर्रिसिंह की आज्ञा से मिथिला पूंजों की रचना हुई । उसमें विद्यापति का वश वृक्ष भी पाया जाता है । दे ए ४. कबि की स्वयं की रचनाएँ उसके प्िथिला प्रदेशीय होने गा की घोषणा करती हूँ । कर्वि की रचनाश्ों में जिन राजाओं श्र ल्‍ रानियों का उल्लेख हुमा है वे सब मिला ब्रान्त की हैं । विद्याप्ति की हर दे स्वनाओं का भौगोलिक परिवेश बंगाल का ने होकर मि थिला का हैं । है मर . ं भू. राजा दिवसिंह ने चिद्यापति को श्रावण सुद्दी सप्तमी, गुरुवार “का : लक्ष्मण सम्वतु २६ ३ के (सिंहास .रूढ़ होने पर) दिन विसपी ग्राम दान नि पे में दिया । इस विषय में एक ताय्रपत्र उपलब्ध हुआ है डॉ० ग्रिंयसंक हक “दे इसको जाली माना है । हर प्रशाद शास्त्री तथा. ड!० दिनेश चत्द्र “कि इसकों प्रमाणिक मापते हूं। . .. . न ६. थिद्यापति के. विषय में जितनी _ भी किंवदन्तियाँ एवं जनश्रुतियाँ प्रचलित हुई वे सब मिथिला प्रदेश में ही हुइ ॥ «




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