हम्मीर हठ | Hamir Hath
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.7 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हग्मीर-हठ पु
मनो जीव पापीन को जम्मराजा,
दियो दंड सोई सबे धूम घोरें ॥२७॥।
( कविस )
खेलत सिकार भारखंड में अझलाउदीन,
मारत झंगनि सगतैनी लिए संग मे।
वेगम कहत मरदट्टी & माहताब जैसी,
जगत जुन्दाई जाके जोबन-तरंग मैं ॥
देख्यो तिन तहाँ मीर महिसा मेंगोल + कहूँ,
काम तें सरसख अभिरास रूप-रंग मे ।
हाय मिले केसे या कराह सुख लागी,
'.. दुख लाग्यो देन असित अनंग अंग-झंग मैं ॥२६॥।
लाग्यों मन मीर सो न घीर धघान्यो जात उर,
भूली-सी फिरति ढुख कासो कहे गात के ।
चित्त चटपटी अटपटी सब वात घात,
बनत न एकौ जात बनत न लात के >६ ॥।
# मरहट्टी वेगम से यदि कमलादेवी समभ तो काल विरुद्ध पड़ता है, क्योंकि
कमलादेवी रणुथम्भगढ की लड़ाई के पश्थात् पकडी गयी थी । पर यह सन्भव हे कि अला-
उद्दीन जब पादशाट होने के पहिले दक्षिण गया था तव कोड सुन्दर मरदट्टी सी बहा ने
लाया रहा हो श्र उसे श्रपनी बेगम वना लिया हो ।
+- अलाउद्दीन, मीर मुहम्मद मगोल नामी सरदार से झपनी वेगम से गुप्त न्यमिचार
करने के सन्देह पर करू दूध हो गया था । वह भागकर हम्मीरदेव की शरण में चला गया
या और उसी के कारण लडाई हुई कवि उसी को महिमा मगोल के नाम से लियता ₹।
>६ पेर को जाते नददीं वनता जेसे लोग कहते ट, ओोस को [निर्धात् 'ब्रास सी देखन
नहीं बनता या पाठ यदि ता तके रक्या जाय तो यह अर्थ हो सकता है कि जाते नहीं
वनता उस शोर देख रही है।
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