दयानंद और वेद | Dayanand aur Ved
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.76 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दयानन्द अ्रोर वेद €
तथापि दयानत्द ने अपनी पुस्तक ऋग्वेदादिभाष्यशूमिका मे वेदिक मन्तो में
से विद्युत, तार-विद्या, विमान विद्या, खगोल-विद्या, भूगोल एवं गणित श्रादि
का प्रतिपादन किया है । उन्नोसवी शताब्दी के मध्य में, योरोप मे भी इनमे से
श्रनेक विद्याप्मो का विकास नहीं हुम्रा था श्रौर वेतार-विद्या तथा विमान-विद्या
का तो प्रारम्भ भी न हुमा था । ऐसी अवस्था में स्वामी जी का वेदो से विमान
श्रादि विद्याद्यो का प्रतिपादन करना इस वात का स्पप्ट सकेंत करता है कि वेदो
में पदार्थ विद्यायें (ऐरघएएएघ 86065) वीजरूप में अवश्य हैं परन्तु उनको
विकसित करने के लिये गम्भीर प्रयासों की श्रावश्यकता है ॥' वर्तमान यूग के
महान योगी व विद्वान् श्री श्ररबिन्द तो दयानन्द के इस दावे को हल्का बताते
है तथा दयानन्द से भी एक हाथ श्रागे बढ़कर कहते हैं कि “मैं तो यहा तक
कहूगा कि वेदो मे कुछ वैज्ञानिक सत्य तो ऐसे भी है जिन्हे श्राघुनिक विज्ञान
जानता तक नहीं” ।* यहा श्री ग्ररविन्द का सकेत मनोविज्ञान श्रादि से है ।
वंदिक मनोविज्ञान वास्तव में भ्रपने श्राप मे भ्रदूभुत है तथा भविष्य मे विकसित
योग-विद्या का वीजरूप है ।
पदार्थ विद्याग्रों (ऐ९४1पा४। 5धटाए€5) के प्रतिरिक्त वेद में नोति-घर्म,
राजघर्म, समाज-घर्म, योग श्रादि भ्रनेक विद्या्ये पायी जाती हैं ।
इस प्रकार हम इस निप्कर्ष पर पहुंचे कि वेद मे समस्त ज्ञान-विज्ञान वीज
रूप में उपस्थित है तथा वाद में वैदिक ग्रन्थों में ऋषियों ने उसी का विकास
किया है । ः
दयानन्द के इस महान वैदिक प्रयास का यह फल निकला कि वेद, जो श्रव
१ इस विषय को मे श्रपनी दूसरी पुस्तक “वेदों के दर्शन' मे श्रधिक विषद्
रूप से उठाऊ गा ।
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