प्रेम दर्शन | Prem Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
145.04 MB
कुल पष्ठ :
505
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे 3
वाद श्रीव्यासजीने अपनी स्थिति बतलाकर देवर्षिसे उसके लिये
उपाय पूछा | तब श्रीनारदजी कहने छगे---
है सुनिवर्थ ! आपने अपने ग्रन्थोंमें जिस प्रकार अन्यान्य
घर्मोका वर्णन किया है, उसी प्रकार भगवान्की कौर्तिका कीर्तन
नहीं किया ! इसीलिये आपके मनमें उदासी छायी है । जिस
वाणीमें--जिस कवबितामें जगतकों पवित्र करनेवाले भगवान्
श्रीवासुदेवकी महिमा और कीर्तिका वर्णन नहीं किया गया है,
वह वाणी या कविता सृदु, मधुर और चित्र-विचित्र पदोंवाठी
( काव्यणयुणसम्पन्न ) होनेपर भी सारासारकों जाननेवाढे ज्ञानी-
लोग उसे “काकतीर्थ' के नामसे पुकारते हैं । अर्थाद जैसे विष्ापर
चोंच मारनेवाले कौओंके समान सठिन विषयभोगी कामी मनुष्यों-
का मन उस कवितामें रमता है बेसे मानसरोवरमें विहरण
करनेवाले राजहंसोंके समान परमहंस भागवतोंका मन उसमें कभी
नहीं रमता । परन्वु छुननेमें कठोर और काब्यालंकारादिसे रहित, एवं
पद-पदपर व्याकरणादिसे अशुद्ध होनेपर भी वह वाणी परम रम्य और
जनसमूहके पापोंको नाश करनेवाली होती है जिसमें मगवान्के नाम
और भगवानके यु्णोंकी चचाो भरी होती है । अतएव उस सगवद्ुण-
नामसे पूर्ण वाणीकों साघु-महदात्मागण सुनते हैं, सुनाते हैं और
कीतन करते हैं । हे मुनिवर ! आप अमोधदर्शी हैं, आपसे कुछ
भी छिपा नहीं है । इसलिये अब आप संसारके कल्याणके
श्रीहरिकी ठीलाऑका वर्णन कीजिये । विद्यानोंने मनुष्यके तप,
श्रवण, नित्य धर्म और तीक्ण बुद्धि आदिका परम फल केवल एक-
मात्र मक्तिपूवक श्रीदरिका गुण वर्णन करना ही बतढाया है |
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