प्रेम दर्शन | Prem Darshan

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Book Image : प्रेम दर्शन  - Prem Darshan

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रे 3 वाद श्रीव्यासजीने अपनी स्थिति बतलाकर देवर्षिसे उसके लिये उपाय पूछा | तब श्रीनारदजी कहने छगे--- है सुनिवर्थ ! आपने अपने ग्रन्थोंमें जिस प्रकार अन्यान्य घर्मोका वर्णन किया है, उसी प्रकार भगवान्‌की कौर्तिका कीर्तन नहीं किया ! इसीलिये आपके मनमें उदासी छायी है । जिस वाणीमें--जिस कवबितामें जगतकों पवित्र करनेवाले भगवान्‌ श्रीवासुदेवकी महिमा और कीर्तिका वर्णन नहीं किया गया है, वह वाणी या कविता सृदु, मधुर और चित्र-विचित्र पदोंवाठी ( काव्यणयुणसम्पन्न ) होनेपर भी सारासारकों जाननेवाढे ज्ञानी- लोग उसे “काकतीर्थ' के नामसे पुकारते हैं । अर्थाद जैसे विष्ापर चोंच मारनेवाले कौओंके समान सठिन विषयभोगी कामी मनुष्यों- का मन उस कवितामें रमता है बेसे मानसरोवरमें विहरण करनेवाले राजहंसोंके समान परमहंस भागवतोंका मन उसमें कभी नहीं रमता । परन्वु छुननेमें कठोर और काब्यालंकारादिसे रहित, एवं पद-पदपर व्याकरणादिसे अशुद्ध होनेपर भी वह वाणी परम रम्य और जनसमूहके पापोंको नाश करनेवाली होती है जिसमें मगवान्‌के नाम और भगवानके यु्णोंकी चचाो भरी होती है । अतएव उस सगवद्ुण- नामसे पूर्ण वाणीकों साघु-महदात्मागण सुनते हैं, सुनाते हैं और कीतन करते हैं । हे मुनिवर ! आप अमोधदर्शी हैं, आपसे कुछ भी छिपा नहीं है । इसलिये अब आप संसारके कल्याणके श्रीहरिकी ठीलाऑका वर्णन कीजिये । विद्यानोंने मनुष्यके तप, श्रवण, नित्य धर्म और तीक्ण बुद्धि आदिका परम फल केवल एक- मात्र मक्तिपूवक श्रीदरिका गुण वर्णन करना ही बतढाया है |




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