महावीर या महाविनाश | Mahavir Ya Mahavinash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.86 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सभावना है । अगर महावीर के शरीर में दूघ रहता हो खून की जगह तो फिर झाप महावीर नहीं हो सकतें । अगर महावीर की काया वज्ध-काया हो तो फिर आप महावीर नहीं हो सकते । कमजीर लोग जो दो चार दिन में सतायें नाते हो वे महावीर कैसे होगे । उन नासमझो ने यह प्रचार किया की महावीर की काया बजा-काया थी । और जिन्होंने यह प्रचार किया कि उनका शरीर कोई दूसरे नियम पालता था उन्होंने सारी दुनिया को महावीर से बचित कर दिया। मेरी बात हो सकती है एसा लगे कि मैं महावीर को नीचे उतार रहा हूं? मैं महावीर को एक सामान्य आदमी बना देना चाहता हू ताकि सामास्य आदमियो के वे काम के हो जाय । जो सीढ़ी श्राप तक न पहुंची हो बह आपको आकादा तक कंसे ले जायेगी ? वह सीढ़ी उपर उठा सकती है जो मेरे पैर तक आती हो । अगर महाबीर को अ्रपना सिर बनाना है और महावीर की ऊचाई तक उठना है तो महावीर की सीढ़ी आप तक आनी चाहिए । एक गरूती हुई पीछे सदियों मे आदर गौर श्रद्धा के मोह में हमने इन सारे लोगो को श्रलौकिक बना दिया । हमने महावीर को बुद्ध को भगवान बना दिया और उनकी कहा कि वे अलौकिक पुरुष है हमने अपने प्रेम मे थे बाते कही लेकिन हमें पता न रहा कि यह प्रेम महगा पड़ जायेगा । और यह प्रेम महगा पड़ गया । अब हम उनकी श्रद्धा करते हैं और आदर करते हैं लेकिन कभी यह ध्ाकाक्षा हमारे भीतर पैदा नही होती कि हम महावीर बन जाये । और श्रगर मैं आपसे यह कह कि मेरे मन मे आकाँक्षा पैदा हो कि मैं महावीर बन जाऊ तो अनेकों को तो ऐसा लगेगा कि यह बात तो नास्तिकता की हो गयी अनेकों को ता ऐसा लगेगा कि यह महावीर का अपमान हो गया । मैं आपको कहू अगर इसमें महावीर का झ्पमान भी होता हो ता भी मै तैयार हू । क्योकि महावीर का कोई क्या अपमान कर सकेगा । मान-सम्मान के जो पार निकल गये हो उनका कोई अपमान नहीं कर सकता । छेकिन आपको सम्मान जरूर कर सकता हू । महावीर के अपमान में भी अगर आप सम्मानित होते हो और क्षुद्रतम मनुष्य अगर महावीर के अपमान से सम्मानित होता हो ता हम महावीर का अपमान करने को तैयार हैं--उस क्षुद्रतम मनुष्य को ऊपर उठाने के लिए उसे महावीर तक पहुंचाने के लिए । महावीर आप जैसे व्यक्ति है--आप ही जैसे व्यक्ति हैं । लेकिन एक दिन भाया कि वे भाप जैसे बिल्कुल नहीं रह गये । वे बिल्कुल आप ही जैसे हड्डी-मास ६ महावीर या महाविनाश
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