महोषध पण्डित | Mahoshadh Pandit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.65 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भदंत आनंद कौसल्यायन -Bhadant Aanand Kausalyayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 महोषध पण्डित को प्रकट करू उसने झ्रादमी का रूप बनाया श्रौर रथ का पिछला हिस्सा पकड़ दौड़ने लगा । रथ में बठे श्रादमी ने पूछा तात क्यों ्राया है ? तुस्हारी सेवा करन के लिए । उसने ्रच्छा कह रवीकार किया। जब वह रथ से उतर शारी रिक- कृत्य करने गया शक्त ने रथ में बैठ जोर से रथ हाँक दिया । रथ के मालिक ने उसे रथ लिए जाते देखा तो टोका रुक-रुक मेरा रथ कहाँ लिए जाता है ? तेरा रथ दूसरा होगा । यह तो मेरा रथ है । दोनों भऋगड़ते हुए शाला-द्वार पर थ्रा पहुँचे । महोषध पण्डित ने भगड़े का कारण जान दोनों से प्रदन किया मेरे निर्णय को स्वीकार करोगे ? हाँ स्वीकार करेंगे । मैं रथ को हाँकता हूं। तुम दोनों रथ को पीछे से पकड़कर ही । जो रथ का स्वामो होगा वह रथ नहीं छोड़ेगा दूसरा छोड़ गा। यह कहकर उसने भ्रपन श्रादमी को श्राज्ञा दी कि रथ हाँके । उसने वसा ही किया । दोनों जने पीछे से रथ को पकड़े चले । रथ का मालिक थोड़ो दूर जाकर रथ के साथ दौड़ न सकने के कारण रथ को छोड़ खड़ा हो गया । शक्त रथ के साथ दौड़ता ही चला गया । महोषधघ पण्डित ने रथ रुकवा श्रादमियों को कहा एक शझ्रादमी थोड़ी ही दूर जा रथ को छोड़ खड़ा हो गया । यह रथ के साथ-साथ दौड़ता हुआ रथ के साथ ही रुका । इसके दारीर में पसीने की बूँद भो नहीं है । न साँस दी चढ़ी है । यह निर्भय है । इस की पलकें भी नहीं हैं । यह देवेन्द्र बार है । तब उसने प्रदन किया क्या तू देवराज इन्द्र है? दा ह् किसलिए ग्राया ?
User Reviews
No Reviews | Add Yours...