योग - मनोविज्ञान | Yoga - Manovigyan

Yoga - Manovigyan  by शांति प्रकाश आत्रेय - Shanti Prakash Atreya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रावकयन | शिव द्वारा मदन दहन या. बुदूघ दारा मार घर्षण एक ही प्रतोक के दो ५ रूप हैं। काम वासना प्धोगामिनी होती है । वह मन को अधिकाधिक भौतिक मल से संयूक्त करती है। इसके विपरीत योग को साधना ऊब्व॑मुली होकर जीवन की समस्त प्रवृत्ति कों ही ऊँचा. उठातों है। इस प्रकार में सोग मोर योग के दो मागं हैं। इन्हों को शाचौत भाषा में फ्तुयान घोर देवयान कहा पया है। योग के द्वारा जो कल्याण साधन संभव है उसके लिये जिज्ञासु को इसका अवलम्बन लेना उचित है । इस विद्या को व्याल्या के लिये इस ग्रंथ के लेखक नें नो प्रयक किया है वह सवा भभिनन्दत के थोग्य है । हस्ता० वासु्देव डारण काशी विश्वविद्यालय रन टन




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