रैन अंधेरी | Raen Andheri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24.95 MB
कुल पष्ठ :
319
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मिलनी तो दूर रही उसके छोटे-से घर की शान्ति भी यानी जिसे ब्रहह शान्ति समभने की श्रम्यस्त थी विध्वश्त हो गई थी । उसका प्रति जो भ्रबतक या तो उसका था या उन पुस्तकों के ढेर का था जिनके प्रति वहकितनी भी ईर्ष्या का भ्रनुभव करे वे उन्हे घर से बाहर नही ले जा सक्तती थी पर झब वह पति भी उससे छिन गया है । कम से कम वह दूर हो गया है इसमें कोई सन्देह नही । वह पुस्तकों मे डूबा रहता था तो उसमे श्रपनी पत्नी के विरुद्ध कोई शिकायत तो नहीं थी पर अब । यद्यपि तीनो की झाख जेल के फाटक की श्रोर लगी हुई थी पर झ्रभी एक जेल-कमंचारी एक तरह से चुपके से ही यह बता गया था कि झभी उनके छूटने मे कुछ देर लगेगी क्योकि कई तरह की खानादुरिया करनी पड़ती है जिनमे देर लग ही जाती है । रूंपवती ने जेल के फाटक की श्रोर देखते हुए यामा से कहां तुम जबसे गईं तबसे तुम्हारी कोई खबर नहीं सिली । उसने यह बाते स्थिति की थाह लेने के लिए शभ्ौर थर्दि हो सके तो उसे सुधारने के लिए कही । इयामा ने कुछ भषेपकर उत्तर दिया मैं बराबर चाचाजी से पत्र-व्यवहार करती रहती हू । दोनो श्रोताश्रो के लिए यह खबर एक बम की तरह थी । वह पत्रों मे क्या लिखा करती थी ? उधर से क्या उत्तर झाता था । रूपवती का चेहरा उसके भ्रनजान मे ही कडा पड गया । बोली हू फिर सोचकर बोली ऐसा मालूम होता है कि उनके छूटने मे घटा दो घटा लग जाएगा । राजेन्द्र दयामा से कुछ पुछना चाहता था पर क्या पुछे श्रौर किस प्रकार पूछे यह उसकी समभ मे नही श्रा रहा था । उसके मा-बाप ने इयामा को उसके लिए व चुना था बाद को विचारों की एकता के काररण इसपर श्रौर ठप्पा लग गया था पर जब इ्यामा घर छोड्कर यहा तक कि रूपवती का घर छोड़कर पता नहीं त्रिलोचन के यहा या किसके यहा रहने लगी तब फिर ऊषादेवी ने ही राजेन्द्र को यह लिख भेजा कि श्रब वह सम्बन्ध तोड दिया जाए श्रोर राजेन्द्र ने उसे मात भी लिया था । केसे यह सब हुआ यह राजेन्द्र की समझ मे नही श्रा रहा था फिर भी इतना तो स्पष्ट ही था कि जो कुछ हो चुका हो चुका । उसमें पीछे लौटने की कोई गु जाइदय नहीं मालूम होती थी । राजेन्द्र को इस समय की यह स्थिति इतनी भ्रखर रही थी कि उसे श्रफसोस हो रहा था कि वह क्यों झाया ? तल
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