जिनज्ञान दर्पण | Jingyan Darpan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(9) मुधारस नि्मल ध्यायने ॥ पास्या केवल नागा ॥ वार सरस वर जन वह तारिया ॥ ।तमिर हरग ज्ञग भागा | मु० ॥ २॥ फटिक सिंहासग जिनजी फावता || तम आाशोक उदार ॥ कछच चासर भामंडल भलकतो ॥ सुर दु टुमि भमिगकार ॥ सु० ॥ ३ ॥ पुष्प विष्टि वर मुर प्वनी द्ीपती ॥ साहिव जग सिगगार ॥ अनंत ज्ञान दर्शन सुख वल घगं ॥ ए दादश शुण श्रौकार | सु ॥ ४ ॥ वागी अमी सस उपशम रस सर | टुगति सून कपाय ॥ शिव सुखना अरि शब्दादिक कथा ॥ जग तारक लिन राय ॥ सु० ॥ ४ ॥ अंतर जामीरे शरग आपरे ॥ इ आायों अवधार ॥ जाप तुमारोरे निश दिन संभर ॥ शरगागत सुखकार | मु० ॥ ६ ॥ संवत उगगीसं रे सुद्ि पन्न माट्रवे | वारस मंगलवार . मुमतिजिगश्वर तन. मनस्य रचा ॥ आनन्द उपनो अपार ॥ सु ॥ 9 ॥ पट़म जिनस्तवत । ( जिन्दुपेरी देखी दे रणभगन नगयन्तय पदेणी ३) निनए पढ़ा जिसा प्रभु पढ़ा प्रभु पीठाग न सथ- मना लिए ससे । पाया चायोनाण । पढ़ा प्रभु नित्य समरिय | | ए द्यांकणी । ध्यान शु् प्रभु




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