मिथुन लग्न | Mithun Lagna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिथुन लगन ऐ७- से परिचय होने पर उससे भी सुना--“राममोहन सेन घे वहां के खानदानी रईस । डबल एम० ए० और एल ०एल० बी ० । प्रेविटस शुरू न कर उन्होंने लड़कियों का स्कूल खोला । मुहल्ले-मुहल्ले चवकर काटते और हाथ जोड़ कर हर एक से वोलते--“आप लोगों की सहायता पर ही हम सीगों के स्कूल की सफलता निर्भर है। अगर आप लोग सहायता परें तो कृतार्थ होऊगा--वस, और कुछ नहीं 1” शुरू-शुरू में किसी ने साथ नहीं दिया । दो-एक लोगो ने दया करके सिर्फ अपने घर की लड़कियों को भेज दिया । कुल घार-पाच छात्राएं और एक टीस-शेड; बस शुरू-शुरू मे तो राममोहन सेन महाशय वो स्लेटें भी अपने ही पैसे से यरीदकर देनी पड़ी, विस्कुट वर्गरह का लोभ दिलाया, पूजा पर खिलौने खरीद-खरीद कर दिए । अभी भी कमला दत्त आई नहीं थी । कमला दत्त उस समय या तो हाल ही में जन्मी थी अथवा जनमी भी नहीं थी । साघ-निसुन्दिपुर की पानापोसर के पास को झोंपडी में, शहर से दूर एक परिवार में एक लड़की का जरम हुआ । न शख बजा, उलू-ध्वनि भी नही हुई भर न किसीने उसके अभिभावकों की ओर से कासे का घंटा ही बजाया । एक बिनचाही बेकार लड़की । घर में वाप भी नही था । अंधेरी रात, तीन कोस दूर से आकर दाई में माल काटी । मां की भी प्राय: 'अब गई, अब गई' अवस्था थी । इतने दिन बाद हुई भी तो लड़की, बेचारी रो ही पड़ी थी। कष्ट के कारण जितना नहीं 'रोई, उत्तना हो क्षोभ, दुश्ख और अपमान के कारण 'रोई । फिर हठातू एक दिन वाप आ पहुंचा । अचानक जाने की तरह ही था उसका हुठातू आ घमर्कना । आते ही पूछा, “किस समय हुई ?” - , सब सुनकर ,कहा, “मिथुन लग्त -में हुइ 1 सड़की भाग्यदान है । लेकिन “लेकिन कया ? बचेगी तो ?” मा ने आतुरता से पूछा । बाप ने कहीं, “सुम्हारी लड़की काफी काम की है । खूब साम कमाएगी, सभी आदर करेंगे, लेकिन *”




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