मिथुन लग्न | Mithun Lagna
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.46 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मिथुन लगन ऐ७-
से परिचय होने पर उससे भी सुना--“राममोहन सेन घे वहां के खानदानी
रईस । डबल एम० ए० और एल ०एल० बी ० । प्रेविटस शुरू न कर उन्होंने
लड़कियों का स्कूल खोला । मुहल्ले-मुहल्ले चवकर काटते और हाथ जोड़
कर हर एक से वोलते--“आप लोगों की सहायता पर ही हम सीगों के
स्कूल की सफलता निर्भर है। अगर आप लोग सहायता परें तो कृतार्थ
होऊगा--वस, और कुछ नहीं 1”
शुरू-शुरू में किसी ने साथ नहीं दिया । दो-एक लोगो ने दया करके
सिर्फ अपने घर की लड़कियों को भेज दिया । कुल घार-पाच छात्राएं और
एक टीस-शेड; बस शुरू-शुरू मे तो राममोहन सेन महाशय वो स्लेटें भी
अपने ही पैसे से यरीदकर देनी पड़ी, विस्कुट वर्गरह का लोभ दिलाया,
पूजा पर खिलौने खरीद-खरीद कर दिए ।
अभी भी कमला दत्त आई नहीं थी । कमला दत्त उस समय या तो
हाल ही में जन्मी थी अथवा जनमी भी नहीं थी । साघ-निसुन्दिपुर की
पानापोसर के पास को झोंपडी में, शहर से दूर एक परिवार में एक लड़की
का जरम हुआ । न शख बजा, उलू-ध्वनि भी नही हुई भर न किसीने उसके
अभिभावकों की ओर से कासे का घंटा ही बजाया । एक बिनचाही बेकार
लड़की । घर में वाप भी नही था । अंधेरी रात, तीन कोस दूर से आकर
दाई में माल काटी ।
मां की भी प्राय: 'अब गई, अब गई' अवस्था थी । इतने दिन बाद
हुई भी तो लड़की, बेचारी रो ही पड़ी थी। कष्ट के कारण जितना नहीं
'रोई, उत्तना हो क्षोभ, दुश्ख और अपमान के कारण 'रोई ।
फिर हठातू एक दिन वाप आ पहुंचा । अचानक जाने की तरह ही
था उसका हुठातू आ घमर्कना ।
आते ही पूछा, “किस समय हुई ?” -
, सब सुनकर ,कहा, “मिथुन लग्त -में हुइ 1 सड़की भाग्यदान है ।
लेकिन
“लेकिन कया ? बचेगी तो ?” मा ने आतुरता से पूछा ।
बाप ने कहीं, “सुम्हारी लड़की काफी काम की है । खूब साम
कमाएगी, सभी आदर करेंगे, लेकिन *”
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