प्रथम प्रतिश्रुति | Pratham Pratishruti

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Pratham Pratishruti by आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस उमर में मुझे लड़की कौन देगा ? फेछू बनर्जी ने वीर की नाई कहा--र्मैं दूंगा । इसके लिए भाई लोग मुझे जावे से अलग करें तो करें 1 फेल्यू बनर्जी को जात से अछग करना ! जात के जो सिरमौर है ! सभा मे हां-हां का प्रवाह वह चठा 1 और फेलू की चालठाकी की इस चाल पर सब अपने-अपने गाल पर आप ही थप्पड़ मारने लगे । लड़की भला किसके घर नहीं है ? कुछ ही दिन वाद फेलू बनर्जी की नौ साल की लड़की शुवि था भुवनेश्वरी से रामकाली का ब्याह हो गया । दर बड़े दिनो से गांव में इतनी धूमधाम से शादी हुई नहीं थी । इसलिए कि रामकाली मे शायद पाच सौ रुपए धूमधाम के लिए मा दीनतारिणी को चुपके से दे दिए थे । यह बेहसाई बेशक निंदायोग्य थी, उस धूमधाम के खान-पान निंदनीय नहीं थे । सो रामकाली फिर से समाज में प्रतिष्ठित हो गया । घर में खाने-सोने की अनुमति मिल गईं । खैर ! उसके बाद भी तो कितने दिन वीते । बही “भुवि' बडी हुई । गिरस्ती वसी । पंद्रह-सोलह साठ की उमडती नदी बनी । उसके वाद तो सत्यवती बुढ़ापे की पहली संतान है, इसीलिए शायद सत्यवती को वाप का कुछ प्रश्नय है 1 डे दीनतारिणी निरामिष रसोईघर में रसोई कर रही थी । संत्यवती वरामदे के नीचे छज्जे मे आ खड़ी हुई । ऊंची नीव का घर 1 बरामदे का किनारा सत्यवती की नाक के वरावर। पैर के अंगूठे पर सारे बदन का भार देकर कतराकर गला यढाती हुई अपने स्वाभाविक मजे गले से उसने आवाज़ दी--दादी जी, औ. दादी जी ! ्‌ निरामिप रसोईघर के वरामदे पर आने की इजाजत सत्यवती क्यों, किसी को नहीं थी । कैवल निरामिप खाने वाले ही जा सकते है। माटी के बरामदे के एक कोने से खाग काट-काटकर सीढ़ी बनाई गई है और उस प्रथम प्रतिभूति / ६.




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