मुजरिम हाजिर भाग 1 | Muzrim Hazir Hai Vol I

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Muzrim Hazir Hai Vol I by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाएँ सदानस्द चोघरी को याद आने सगीं । कोशिय है उस दिन सदके को मानो मार्ग भभी जा सकता है 1 पहुचानी जा मवती द्वाठें भौर नोगा लोगों से उसके व्यवहार वर घटनाएँ 1 सकी छोटीमें मोटी मा न फिर भी कोई भी उसे नहीं पहचान सका उसके दादाजी उसके बाप ते मां प्रकार मामा-सबने उसे प्रचलित नियमीं के घेरे से घिरी पृथ्दी नवासित कर दिया था निर्दामित उसके माये पर दण्ड का बोक रो जिम्मेदार्रियों से ने विवेक को उन्होन मुदत कर लेने की तु हा की पी उन सोगीं ने सोचा पा. मदानन्द का यम का प्रवर्तन समग्र मानव जाति के पूर्वपुस्प माए हैं 1 मी दिन में मोच निंपा था वर्ट मैं जैसे तुम लगा के पाप का मागीदार नहीं देसे ही ठुम्हार पुष्य का । अपने सारे पाप-पुण्या की सुकर्ति बौर दुस्कृति लेकर तुम लोग मुर्ख ग--सिर्फ लोग छुटकारा दो। में तुम्हारी महायता भी नहीं चाहता तुम लोगों के उत्तराधिकार का अधिकार्ट मी नहीं चाहता 1 अपराधों की दाय में मुवर्त नने के बावजु्द जान वह एक लेविन सारे आआमामी है. । माग्प का यह मीं मानों एक अजीय मसीत है घह्द भला कादमी पाम ही पाम चर्थ रहा या 1. उमकी तमाम जिन्दगी नुरे मम्मी देख आमामी और फॉरियादी को लेकर हीं गुजरा 1 उसने । लेकिन ऐसा आमामी उमने दूसरा नहीं देगा 1 बोला जरा कदम बढ़ाकर चलिए कदम बढ़ाकर 1 कदम बढ़ाकर चलने मे ही उयादों आगे. जाया जा समता दै। उसके नाना दाप मे प्रकाश मामा उसके दादाजी सबने तो दिया में उरा कदम बढ़ाकर ही चलना चाहा था । उन मबने ही सोचा था बदम दढ़ाकर चलने से हीं शापद वुछ और आगे बढ़ जाएंगे । मचा था और मी जरा कदम बढ़ाकर चलने न ही और भी रुपया और भ्मी ददम बदावर ही चरण च लेकिन कक-र्यकर चलने की प्रा उन्हें नहीं हुई । उन यह पता नहीं था कि जो चलते हैं वद्दी चर्तत रडनिवाले लोगों का हराकर आगे बढ़ जाते हैं । गजब है । अन्त तक वहा हान दुआ था उनका । उस सदा की 1 मदानन्द दो याद हैं रमिक पाल के यहां सम्मत लेकर जैसे आाज कह चरी का प्यादा हाडिर हुआ है ठीक ऐसे ही एक दिन प्रकाश मामा अइमके पाम टुठात मुर्ारिम हाजिए | मि?




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