भाभी | Bhabhi
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.11 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाभी
'उनेकी जीभ ता में लग जाती है । बड़े भया सचमुच
ही बड़े भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसे आाज्ञाकारी और ्नुचर
साई मिले हैं । कभी कभी मौज में झाकर .वे कह भी
देते हैँ--जब तक दो-दो बछेढ़े मौजूद हैं, मु क्या
परवाह है ?
“'झाभी उस दिन ाप चूल्दे के सामने बेंठे भोजन करते-
करते कह उठे थे--मुमे एक ही दुख है ।
उस समय बड़ी भाभी जो रायता परोस रहीं थीं. 'और ''
मैं जो रोटी बना रही थी, दोनों ही उनके मुंद से झगली,
बात सुनने को उत्कंठित हो उठीं । तब. '्याप बोले. थे--
यही कि पिताजी दुख तो मेरे दिस्से का भी भोग गये '
और सुख अपने हिस्से का भी सेरे लिए रख गये ।
' उनकी इस बात पर मैं तो ठह्टाका सार कर हँस
पडी; पर भाभी ने कुछ बुराआसा माना था । दे उसी '
समय बोल उर्ठी--तो कुछ मेदनत-मजूरी क्यों नहीं करते ?
पड़े-पड़े खाने. को श्रानन्दू समकते हो; पर यदद. नहीं
- जानते कि पराधीनता का खाना भी कोई खाना है .।
दूसरे की कृपा. का सोहनभोंग थी मुझे तो कभी. नहीं
' रुचा, पर क्या कर॑ सब कछ सदना दी पढ़ता है 1
' तुम इसे भले दी सुखभाग नाम दा |
-... इस प्रकार छाप्रिय रूप प्राप्त होजाने पर उन्होंने अपने
“स्वाभाविक वढ़प्पन से केवल मौन, रदकर उस संवाद को
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