भाभी | Bhabhi

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Bhabhi  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाभी 'उनेकी जीभ ता में लग जाती है । बड़े भया सचमुच ही बड़े भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसे आाज्ञाकारी और ्नुचर साई मिले हैं । कभी कभी मौज में झाकर .वे कह भी देते हैँ--जब तक दो-दो बछेढ़े मौजूद हैं, मु क्या परवाह है ? “'झाभी उस दिन ाप चूल्दे के सामने बेंठे भोजन करते- करते कह उठे थे--मुमे एक ही दुख है । उस समय बड़ी भाभी जो रायता परोस रहीं थीं. 'और '' मैं जो रोटी बना रही थी, दोनों ही उनके मुंद से झगली, बात सुनने को उत्कंठित हो उठीं । तब. '्याप बोले. थे-- यही कि पिताजी दुख तो मेरे दिस्से का भी भोग गये ' और सुख अपने हिस्से का भी सेरे लिए रख गये । ' उनकी इस बात पर मैं तो ठह्टाका सार कर हँस पडी; पर भाभी ने कुछ बुराआसा माना था । दे उसी ' समय बोल उर्ठी--तो कुछ मेदनत-मजूरी क्यों नहीं करते ? पड़े-पड़े खाने. को श्रानन्दू समकते हो; पर यदद. नहीं - जानते कि पराधीनता का खाना भी कोई खाना है .। दूसरे की कृपा. का सोहनभोंग थी मुझे तो कभी. नहीं ' रुचा, पर क्या कर॑ सब कछ सदना दी पढ़ता है 1 ' तुम इसे भले दी सुखभाग नाम दा | -... इस प्रकार छाप्रिय रूप प्राप्त होजाने पर उन्होंने अपने “स्वाभाविक वढ़प्पन से केवल मौन, रदकर उस संवाद को 2 पेज




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