सृष्टि विज्ञान | Srishti Vigyan

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Srishti Vigyan by एस. ए. दुदानी - S. A. Dudani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओरेम्‌ सृष्टिविज्ञान रैफ्रेक्रेधरिस प्रथम अध्याय पश्चिमी विद्वानों में इस विषय पर भलीभौंति आंदोठन हो रहा है कि आदि साष्टि मनुष्यादि की किस प्रकार हुई दो विचारों पर वह लोग इस विपरय पर पहुँचे हैं एफ यह)क़े की ने छष्टि की रचना नियम पूर्वक निर्माण की हैं । दूसरे यह [कि सम आग उक्त प्रकार के विरुद्ध किसी एक स्वरूपसे विकारकों प्राप्त होते हुवे वर्च- मान दाओं को पहुँचे हैं । महोदय ज्योंजे रोमेनीजूक की प्रथम विचार ( आस्तिकवाद ) पर यह आशंका है कि यह बात मनुष्यकी बुद्धि में केसे आ सकती है कि किसी व्यक्तिका विचित्र शरीर एक क्षण में वहिरज दशाओं के अनुकूल हो गया ? जगद्‌ प्रप्तिद्ध डार- विन महोदय भी प्रथम विचार था आस्तिकवाद के विरुद्ध हैं । लाया हैकील आदि अनेक पश्चिमी विद्वाभू डारविन से सह मत हैं और मानते हैं कि जिस प्रकार सिन्न९ मानवी भाषाएं किसी एक भाषाका रूपान्तर हैं उसी प्रकार नाना व्यक्तियों की दशा जाननी चाहिए और अपनी पुष्टि में यह कहते हैं कि सृष्टि उत्पन्ति पुष6 जिलंडवतिरिट फिपतना06७ 0 07ह॒वांठ फर्णप्रघिं०0 9 (००० व. े०णघ65 ऐप... 1.4 ने) ९.6 ले उतृगो उक्ापााए है सिविल]




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