हमारे शरीर की रचना भाग 1 | Hamare Sharir Ki Rachana Bhag-1

Hamare Sharir Ki Rachana Bhag-1 by त्रिलोकीनाथ वर्मा - Trilokinath Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| हमारे शरीर की रचना [ अध्याय शान न जज पथ ७ टीन टथीा परीक्षक प्लच्छुताल में से देखता है । जिख वस्तु की परीक्षा की जाती है वह एक काँच की पट्टी पर रख दी जाती है यह पट्टी कमानियों से दबाकर मच पर रक्‍्खी जाती है । मंच के ब्रीच मे एक छिद्॒ होता है वस्तु इसी छिद् के ऊपर रहती है । बड़ी नली के नीच क॑ भाग में एक या कई ताल लग रहते हैं यह ताल घस्तु के ऊपर रहता है पंच (५) द्वारा यह नली ऊपर नीच सरकाइ जा सकती है इस क्रिया से यस्तताल आर वस्तु कं बीच का अंतर कम आर अधिक किया जा सकता है यदि अंतर वहत ही घीरे-घीरे बढ़ाना या घटाना होता है तो पंच (२) से काम लिया जाता हैं जहां सं साफ़ साफ़ दीखता है उसी अंतर पर वस्तुताल का रखते हैं । बड़ी नली के भीतर एक नली अर होती ४ इसी में चच्युताल लगा होता है । इस नली को ऊपर सरकाने से चनुताल आर वस्तुताल का अंतर अधिक किया जा सकता है । प्रकाश की किरणए शीश पर सर उचट क्र मंच के छिट॒ में सं होती हुई चर्तु पर पढ़ती ४ । वस्तु से उचट कर वस्तुताल और नली आर चलुताल में होती हुई परीक्षक की चल में पहुँचती हैं । शीशे से प्रकाश कम या अधिक किया जा सकता है । इस यंत्र की सद्दायता से बेज्ञानिकों ने अनेक प्रकार की सूच्म वनस्पतियों का दा है जिनका साध्गरण मनुष्यों ने न कभी दखा शोर न सना । साधारण मनुष्या का ता इस बात के ससने स भी बड़ा आश्वचय हाता है कि जावघारी इतने सूचम भी हा सकते हैं जा ाँखों से न दिखाई दें परन्तु इस विषय म॑ संदेह करना व्यथर हैं। यदि आप इस यंत्र के द्वार वस्तु का दंखना जान ल ता आपका भा इस बात का पूरण विश्वास हो जायगा । जिस प्रकार बनस्पतिवर्ग में अनेक प्रकार के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे व्यक्ति हैं उसी प्रकार प्राणिवग में भी भिन्न सिन्न




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