कबीर साहित्य की भूमिका | Kabir Sahitya Ki Bhumika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32.77 MB
कुल पष्ठ :
365
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पु कबीर-साहित्य की भूमिका गोरख़नाथ बार-बार इंद्रियसिरोध ब्िंदु-साधना श्रौर जगत के जंजाल को छोड़ने की बात कहते हैं । ९ साघना-मेद के कारण थोड़ा प्रकार-मेद श्वश्य है परन्तु इन साघनाश्रों में मूल तत्व एक दी हैं इसमें संदेह नहीं । तीनों साघना-घाराएं योग की क्रियाद्ओों परिमाघाओं श्रौर झनु- सूतियों को श्रपनाती हैं--कोई कम कोई झधिक--श्रौर तीनों श्रह्टिंसा दया चमा नियम संयम झपरिश्र जैसे नैतिकता-मूलक तत्वों को मूल- मिच्ति मानती हैं । ऊपर जिन तीन प्रमुख मधथ्ययुगीन घाराओं का दमने उल्लेख किया बह मूलत भारतीय हैं । मध्ययुग में पश्चिम की ओर से एक नई परन्तु विदेशी साघना-घारा ने प्रवेश किया । यह सूफी साघधना-घारा थी | परन्तु मध्ययुग की झन्य घाराश्ओों में श्र इसमें किंचित भी विभिन्नता नहीं हे.। सूफ़ी भी कायानिष्ठ ईश्वर और श्रद्देत साघना को प्रधानता देते हैं। वे भी वाह्याचारों और क्मकांडों के विरोधी हैं श्रौर जाति-कुल-मेद नहीं मानते । कुछ बातों में मददत्वपूर्ण अंतर भी है परंठ यद्द अंतर ही उन्हें स्पष्ट रूप देता है । श्रन्यथा मध्य युग के साघना- प्रवाह में सारी ्रसमानता का लोप दो जाता दै। इस प्रकार दम देखते हैं कि मध्ययुग (७००-१४०० ) में साधना की एक. सामान्य धारा सारे उत्तरी भारत में प्रवादित थी । सिद्ध जैन श्र येगी विशिष्ट धाराश्रों का प्रतिनिधित्व करते हुए भी एक ही प्रवाद्द के विभिन्न अंग बन गए थे। इस्लामी सूफ़ी धारा भी इस सामान्य प्रवाइ की एक श्रभिन्न तरंग मात्र नन्यमनरनवनपत सिल प कली का कि नहा नल +जनबरं... रीककाकर कन्भ कम नलशमनफ पर मरीचि गंघब-नड्ारी दापणु-पड़िबिलु जइसा । वाताउतते सो. दिढ़ मद श्राये पायर जइया ॥। बाँखिसुश्रा-जिम केलि करई खेलहूँ बहुषिद खला । बाजुश्न-तेले सल-सिंगे श्राकाश .फूलिला ॥ . र४ सुणों दो देदल. तजौ. जंज़ालं
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