जैनधर्म प्रकाश | Jain Dharm Prakash
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.72 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९)
की कड़ी झाश्ञा नहीं हे-वे स्वयं मरे हुवे पशुष्य मास सेगे मैं
दोप नहीं खमसने है, इसी से चीन व श्रह्मामं फरोड़ों बौद्ध मांसा-
हारी है जबकि जैन कोर थी प्रगदपने से मांसाहारो न सिलेंगा ।
इसलिये जैनमत बौद्धमत की शासा है णह्द कथन ठोक नहीं है
और न यह द्दिन्टूमत की शाखा है, क्योकि सांखय, मीर्मांसादि
चुनो से इसका दाशनिक मार्ग शिस्न दी प्रकार का है. जो
इल पुस्तक के पढ़ने से विदित होगा ।
मत की शिक्षा सीवी शोर वैराग्ययूण है। दर एक
'शूदरूथ को छुः कर्म नित्य करने का उपदेश है। ( १) देवपूजा
(९) गुरूभक्ति ( ३ ) शाखपढ़ना (४) संयम ( 301 ठण्पारशर्ण,
07 $शाए एप ए९ ), का अभ्यास ( ५. ) तप ( साम्गयिंक या
संध्या था ध्यान था ( फ०्तादिधिणा है (६) दान ( शादार,
झोपधि, न्नमय तथा विद्या) तथा उनको इन शाठमूल शुखोकि
पालने का उपदेश हैः--
मद्यमांस मछु त्याग सहाएब्रत पंचकसु ।
मी सूलगणानाइुश दीणां श्रमणोतमा। ॥।
झर्था्ति-मद्य या नशा न पीना, मासि ने खाना, मधु यानी
शहद ल खाना क्योंकि इसमें बहुत से सुच्म जंतुझों का नाश
होता है, पंच-पापों से घचना श्र्गाव् जान घूम कर बूथा
पशु पच्षी लादि की दिसा न करना, भू ठ न बोलना; चोरी न
करना, अपनों स्त्री मे संतोष रखना; परिश्रदद या सम्पत्ति की
मर्यादा झर लेना जिससे तप्या घटे इनका गदस्थो के भाठ
मूल गुण उच्चतम झाखायों-ने चतलाया। है ।
हमारे जैनेतर भाई देख सकते हैं कि यंद शिक्षा भी हर पक
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