प्राचीन भारत | Prachin Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ई] मी देखा गया कि पतिहासिक घटनाएँ वारंयार एक सरीखी होती हैं, विस्तारमें ही थोड़ा बहुत श्रन्तर होता हर तो उन्हें दुद्रानेकी कया श्रावर्यकता है । “इतिहास थ्रपनका दुद्दराता रहता है” यह पाश्यात्य पेतिहासिक तथ्य भी है । हमारे यहाँ तो यह स्वयं श्त्यन्त घ्ाचीन सिद्धान्त है। यथा पूर्वमकर्ययत्‌”से लेकर थाजतककी समस्त पौराणिक श्रोर ऐतिहासिक उद्जियों इस वातकी साछी है । इसीलिए श्ाघुनिक ऐतिहासिक कालफ्रम, घटनाक्रम थीर सामाजिक तथा 'झार्थिक इतियुसके दिस्तारके पचडेमें न पढ़ दमारे पराघीननि इतिहास श्र पुराणकी शेल्वी ही निराली रक्यी 1 रामायण महाभारत श्रौर श्रठारदद पुरासों उपपुराणकी रघनपके-इजारों चरख पहलेकी प्राचीन उपनिपंदे इस बातकी गवाह हैं. कि इतिहास-पुराण पॉचर्वी बेद समभा जाता था शोर जान पदता है कि उन्हीकी नीवपर थ्राजफल के इतिहास पुराणकी भीत खडी है। पुरा्णोकी पंचलक्षण कहा है । '“समश्व्रतिसगंश्र बंशो मन्वन्तराखि च । बेशाजुचरितं चैत्र पुराण पंचलच्षणम्‌ 1” इस उच्जिकें अनुसार पुराणमें सष्टिकी '्ादिसे श्ाज- तकका वर्सन होना चाहिए आर हमारें पुराणकारोंने इस परम्पराको भविष्य पुराणमें “ विकटा ”. नाम राजमहिपीत़कका वर्णन करके नियाहा है। कुछ लोगेंकी प्रवृत्ति दै कि इस तरहके वर्सानकों क्षेपक कह- कर घृणाकी दृष्टिस देखें परन्तु में इसे बहुत सराहनीय उद्योग समभझत। हूँ । हाँ, जो लोग ऐसी रचनाकों बूढ़े वाया कृप्यदेयापन ब्यासकें गली मरते हैं उनसे मैं सहमत नहीं हूँ । पुराण जनताके लिए कहे गये हैं थ्रीर कथा कदइनेवालोंकेलिये लिखे गये हैं। इतिदाससे संसारको जो शिक्षा मित्न सकती है उसके प्रचार श्रीर विस्तारका इससे श्च्छा उपाय तो थवतक देखने नहीं ध्राया है । हो, छापेखानेको हम इस उपायके बराबरीकी पद्वी किसी किसी इष्ट्सि दे सकते हैं । श्रोत्तागणकी परिस्थितिपर घिचयारकर च्ा




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