विज्ञान | Vigyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vigyan by रामदास गॉड - Ramdas God

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामदास गॉड - Ramdas God

Add Infomation AboutRamdas God

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
विज्ञान बिचारॉंसें [ भोग ३8 ऐंस्ट्रेनका सापेक्षवाद्‌ [ छे° प्रो° दत्तात्रेय गोपार मटगे, एम्‌. एस्‌. सीं. एक. परी. एस. 1 १३-देशकी द्रीको नये टंगसे লাদলা ऐन्स्टेनवाले गणितकी नथी विधि पिछले अध्यायमें केशव ओर नारायणके प्रवासका गणित करनेके लिये ऐन्स्टेनकी पद्तिका उपयोग किया गया है! अब मा०मो० के प्रयोगका गणित भी इसी पद्धतिसे किया जावेगा । इस गणितमे दूरियोंके नापनेकी इकाई १ “रवेः (१,८६००० मीर प्र ०से) रहेगी । मनुष्य- कृत वेग सचंदा ५ मी । से, से बहुत कम रहता है । उदा- हरणाथं, तोपके गोलेका वेग है मी०। से, मोटरका वेग 4० मी से, हवाईं जहाजका वेग ब मी०।से, होता है । यदि मनुष्यकृतवेगोंको प्रवेके सापेक्ष लिखे, तो वे তু দ্বীভভত प्रासे, से बहुतकम रहेंगे, किन्तु नवीन गणितमें प्रकाशवेगका बारबार उपयोग होनेसे सभी वेगोंका माप प्रवे।से, ओर दूरियां प्रवे में ली जावेगी । इस सूचनामें यह सुविधा है कि यदि हस किसी निश्चित दूरीकों प সন कहें, तो इससे आपसे आप पता चल जाता है, कि प्रकाशकों उतनी दूर जानेके लिये प से, छगेंगे । इस प्रयोगमें नावोंके बदलेमें प्रकाशकी किरण हैं । केशव और नारायण आईनोंके साथ रहनेवाले अवलोकक हैं । (१) यदि म-+क-+ प्र दूरी २ त पबे हो और म-+ ब-+ म दूरीभी २त अबे हो तो नवीन पछतिके अनुसार प्रकाशको इस अ्रवासमें भी एकही वेगसे জালা चाहिये । इसलिये पहिली किरणकों अपने प्रवासमें रत से० लगेंगे । इसका फल यह होगा कि वे किरणं एकही क्षण लौटकर आवेंगीं, जिसके कारण अवछोकन-कर्त्ताको प्रकाशकी धारीमें तीत्रता विषयक कोई परिवत्तन नदीं दीखेगा । इसी अकारं मा० मो० को अपने श्रयोगमें दीखा था। इसलिये उसका यही कारण है, कि ग्रकाशकी किरण सदा एक ही वेग से जाती हैं । ( २ ) (अ) अब पघृथ्वीके वेगका विचार करते इए, जो य प्राति है, उस परके आईनोंका वेग भी य प्रासे होगा किन्तु अयोगकर््ता इसबार आईनोंके साथ न जाकर प्रथ्वीकी कक्षाके एक स्थान पर स्थित रहेगा । माधव और केशव दोनोंके मतसे भ -ब दूरी त प्रवे है। ', चित्र ११ में মম ল্ল माधवके मतसे यदि इस श्रवासमें श से० छगें तो, बढदूूय शा „प्रद्‌ =^. तः +-यशः नवीन पद्धतिके अनुसार प्रकारका वेग दोनों ? ग्र० । से लेते हैं, ओर चूंकि माधवकों ऐसा अनुभव होता है कि दूरी शा से० में पूरीकी गयी है, इसलिये उसके मतसे मद्‌ शा म्पे '. श = ^^तर + यर याश =त +-यश--(४) याश-शंय লজ याश्च (ट१-य)=त ন্‌ या श॒ ह कल १~य श्य्‌ সপ 70টি ~~~ { १२५ ८१-य ५ केशवके मतसे जिस अ्रवासके लिये त से० लगे, उसी भवासके लये माधवके मतसे श० से° छगे। ^^१--य २ संस्या १ की अपेक्षा कम है और श^.८१-ख२ = अर्थात्‌ श संख्या त संख्यासे सांरिव्यक मानम बद है, क्योंकि उसमें जब हम १ से छोरी संल्याक्रा गुणौ करते हैं,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now