भारत के प्राचीन राजवंश भाग -1 | Bharat Ke Prachin Rajvansh Part - i

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Bharat Ke Prachin Rajvansh Part - i by पण्डित विश्वेश्चरनाथ रेड - pandit vishveshcharnath Red

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रद) जब पुम्याय दी हुई जागपमें ऐप होत्य था तप कल्चुरी राताद्ध अपने र्यने तो और भी बडे बडे रेरदितिक काम होते होगे । परन्तु उनका लिया दूर 'िवरण न सिलनसे लचारी है । कलवुर्रियोंके साज्यके साथ ही उनवौ लाति नी जाती रहा । अत्रे कहीं कोई उनका भाम छेनेयरा नहीं सुना जाता है । हैदयदगफे कुछ लोग जरूग मध्यप्रदेश, सयुक््यन्त और चिटारमें पये ते है । हमको मुन्झी माथव गीपालस पता लया दै. कि रतनपुर ( मध्यप्रदेश ) में देदयवशियोंका राय उनके शूल पुस्प सिद्धगामने बला आता था 1 पर यहाँदे ५६ वें राजा रपुनधारिहका मरहटेंनि रतनपुरमे निकाल निया । उसरा मौंटादमें रतनपोपल्तिंद इस समय उसी तिलेनें ० वें जायारदार है ! यद रलपुर सिद्धगमंतरे देटे मोर्वपन वसाया था । सपुक्ततान्तमें दढदी चिछ बलियारें रात हैंदेयपशी हैं। परत थे कपनेकों सुरनवर्धी घततति है । 'ऐस ही कुछ टैटयवशी बिहारनें भी सुने जाते हैं, विनके पस उठ जमादारा रह गई है । परमार-वदा । देन्यवधके वाद परमए वशक्ता इतिदोस लिखा गया दे । भानमाल ( माखाद ) में पदले पहल इस ( पीर ) वादा राय क्ण्रालेस वायन दुआ था । यद्द आवृके सदा धथुकका बेटा और देवशररा पीता था ॥ परनारोंके आबू पर अधिकार करनेरे पदले दस्त्ठिर्शके हृथूडिये राटोडेनि भे लेंसे छानकर उस श्रतेश पर अपना रान्य कायम किया था 1 आाघूके दिललेखेंमिं परमारोंके झूल पुच्यका नम धूसरातर लिया है । मारवाद और मय फौर राजा थी उसोका शॉप्टादमें में । इम ऊपर ढिय शुके हैं के कुस्परातने सीनमाल ( सार्वाड ) में अपना राज्य जमाया । व्से इनकी कई गास्राजंनि निरल कर जालोर, सिंवाना, कोटक्रिद्र, पूमल, सवा, परकर, सप्ौर आदि गंपमि सपना राय वायम क्या 1 कुछ समय वध परमारोका अइवत्ी (१) सद्दीफए जरीन, जिच्द 3 1




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