भेषज्य सार संग्रह | Bhaishajai Sar Sagrah
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47.11 MB
कुल पष्ठ :
892
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भेषज्य-सार-संग्ह
मान-अभाण
गुरु और लघु रूप में द्रव्यों के अनक कल्प विकल्प है । प्रत्येक कल्प विकल्प को भार
बाब्द प्रदान किया जाता है । किसी भी वस्तु के निर्माण मे दव्यों के निश्चित प्रमाण के भार
को प्रहण वारके मिश्रण किया जाता हैं। यदि सान का ध्यान न रख या प्रमाण पूर्वेक योजना
न कर द्रव्य का निर्माण किया जाय तो प्रथम तो उनमें वे शुण नहीं आ सकते कि नो
आने आवश्यक है और दूसरे जितनी मी चार उनका निर्माण होता है उतनी ही बार उनके
स्वरूपों और गुणों मे मिन्नता होनी सम्भव हैं, अत. औऔषव निर्माण के लिए मान-ज्ञान उतना
ही आवश्यक है जितना उनका प्रगोग ज्ञान । इस प्रकार माप तोछ कर निर्मित किये हुए
द्रव्य समान गुण और समान रबरूप वाले होने के कारण प्रयोग कर्ताओं को अधिक प्रिय होते
है और इस प्रकार के समान गुण और स्तरूपों के द्रव्यों का निर्माग करने वाली रसायन
गाय छोकप्रिय हो जाती है। समान गुण और स्वरूपवाली औषध का निर्माण ही प्रमाणायोजन
( जीव उदाएताइदीाणा, ) कहा जाता है |
पुरजों की थांति आज के शासक भी गही चाहते है कि औषधियां श्रेष्ठ और समान
गुणघर्म गौर ग्रमाणवाली हों, पूजो ने इसीलिए माव-सर्यादा का आयोजन किया था । यही
आयोचन प्रमाणित रूप में हेम तक था रहा है । समयावुसार तथा राजाओं की नीतिं-
रीति के अनुसार इन मानों मे परिवतेन भी होते आए है । «
आजकछ की शांति प्राचीनकाल से थी दो प्रकार के मान थे । (१) मागध और (२)
लिंग । चरकाचार्य के अनुयायी मागध सान का उपयोग करते थे जबकि सुश्चताचार्य
के अनुयायी करलिंग मान का प्रंग्रोग करते थे ।
यतमान इग्पीरियल आए सेट्कि मान
न्रिटिंग औषध निर्माण प्रणाढी मे उपयुक्त माना का परिवर्तन सुन (0000०
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User Reviews
rakesh jain
at 2020-12-09 10:24:28