भाग्य फेरने की कुंजी | Bhagya Ferne Ki Kunji

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Bhagya Ferne Ki Kunji by महावीर प्रसाद गहमरी - mahavir prasad gahmari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' भारय' फेरने की कु्जी । ११ अपने अपने कर्ममें लंगेहए सनुष्य अच्छी से: अच्छी और बड़ीसे बड़ी सिखि पाते हें । केसे पाते हैं सन-- यंत: प्रदाचसूतानों येन सवामद ततम । स्वकपेणा तसश्यच्य 1साद्ध बवेदात साववः ॥ अ० १८ मों+ '८६ जिससे यंद जगत उत्पन्न इआ' हे और जो सबमें व्याप रहा है, उस इंश्वरकों अपने अपने कमंसे अच्छी तरह पूजकर सुष्य सिद्धि पाते हैं । मतलब यह कि अपनी जिन्दूगीका, फर्ज अदा करने, शास्त्रसें कहे हुए भंच्छे काम करने जोर शगदानवी इच्छालुसार चलव्तर: अपने अपने स्वसावसे पेदा हुए तथा. देंदकाल और 'सयोगसे मिले हुए कम अच्छी तरह करनेशा नाम इश्वरव्सा प्ज़न है । ऐसे कमें करके दही ईश्वर प्रसन्न ,किया जा रूकता हे तथा पेसे कर्मसे ही. मनुष्य तर सकता हैं । इसलिये देश कालसं अलुसखार हर्मकों अपनी जिन्दनगीका कऋत्तव्य पालन कर ना चाहिये । ,. इसीसे हमारे बढ़ती होनिवांली हे, इसीसे हमारी उन्नत्ति द्ोनेचाढी है और. इसीसे हमारा उद्धार होनिवाला है। याद ' . रखना कि यंह संब कहीं ऊपरसे दोनेका 'तहीं, वदिऋि अपने. कमखे ही होता है । ओर कसे अपनी चासनाके अनुसार, अपने हृद्यकी -इच्छादुसार, अपने स्वभाव: अलुखार तथा अपनी “. मरजीके अनुलार होता है । क्योंकि अपन सीतर जो काम है कह काम दी दसको कमेके लिये उकलाता है । ( पाठक यहद्दं वास और कमेका भेद याद रखें ; काम ' शब्दकी परिभापां '. गीताके तीसरे अध्ययक् इ७वें न्छोकर्म की गयी है। कसेके माने छत्य करना, साधारण वोलचालमसें कंमेव्यो - काम भी कहते. दर - “टी कञ हर ि च कह द




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